Rajasthan news: डेढ़ गुना भाव में कागज खरीद रहा राजस्थान
राजस्थान में सरकारी विद्यालयों में निशुल्क बंटने वाली किताबों के लिए कागज की खरीद में बहुत बड़ा झोल चल रहा है । जो कागज ncert और बाजार में कम भाव में मिल रहा है, उसे राजस्थान में डेढ़ गुना भाव में खरीदा जा रहा है । पाठयपुस्तक मंडल के द्वारा टेंडर के लिए जो शर्तें निकाली गई हैं, वो शर्तें कुछ चुनिंदा मिलें ही पूरा करती हैं। और बाकी मिलें इस प्रक्रिया से बाहर हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप किताबों के लिये कागज की खरीद में मोनोपॉली यानी एकाधिकार चलता है, जिससे कागज बहुत महंगा मिल रहा है
जो शर्तें पहले भ्रष्टाचार बताई जा रही थी, अब उन्हीं शर्तों के साथ निकला टेंडर
रिपोर्ट्स के अनुसार, ncert ने इस साल 69 रुपए किलो की दर से कागज खरीदा है, जबकि राजस्थान के पाठयपुस्तक मंडल द्वारा यही कागज लगभग 90 रूपए किलो की दर से टेंडर से खरीदा गया है। जब 6 साल के दस्तावेज और बिल देखे गए, तो पता चला कि पिछले 6 सालों से लगातार महंगा कागज ही खरीदा जा रहा है , जिससे लगभग 300 करोड़ से ज्यादा का झोल हो चुका है। आपको बता दें कि जब राज्य में भाजपा की सरकार नहीं थी , तो राजेन्द्र राठौड़ के द्वारा इन शर्तों को दूसरे राज्यों की 3 - 4 मिलों को फायदा पहुंचाने वाली बताया गया था , ओर इसे भ्रष्टाचार का नाम दिया गया था । लेकिन जब इस बार राज्य में भाजपा की सरकार है, तो उन्हीं शर्तों के साथ कागज की खरीद का टेंडर निकाल दिया गया है।
क्या हैं पाठयपुस्तक मंडल की शर्तें
आपको बता दें कि पाठयपुस्तक मंडल की 2 प्रमुख शर्तें हैं,
पहली शर्त : मिल द्वारा प्रति वर्ष 45 हजार मेट्रिक टन कागज का उत्पादन जरूरी है। पाठयपुस्तक मंडल प्रतिवर्ष औसतन 20 से 22 हजार मेट्रिक टन कागज खरीदता है। यह पेपर सिर्फ 3-4 मिलों से ही खरीदा जाता है, यानी एक मिल से औसतन 5 से 10 हजार मेट्रिक टन की ही खरीद होती है। इसलिए यह शर्त चौंकाने वाली है । पहले यह सीमा 25 हजार मेट्रिक टन थी। तब ज्यादा मिलें टेंडर प्रकिया में भाग ले पाती थीं। और इससे कम दामों में अच्छा कागज मिलता था।
दूसरी शर्त : कागज का वर्जिन पल्प से बना होना जरूरी है । आपको बता दे कि कागज 3 तरह से बनता है । पहला गेहूं और चावल की भूसी से, यही वर्जिन पल्प पेपर है। दूसरा पेड़ों की लकड़ी और छाल से जिसे वुड पल्प पेपर भी कहते हैं। और तीसरा रद्दी से रीसाइकल पेपर ।
तीनों ही कागजों को समान बीआईएस मार्का (1848:1991) मिलता है। आईआईटी रुड़की के पेपर टेक्नोलॉजी विभाग के मुताबिक, समान मार्का वाले कागज की गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं होता है। वन संरक्षण के लिए केंदीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2018 में रीसाइकल पेपर को इस्तेमाल करने के निर्देश दिए थे। Ncert भी ये ही कागज खरीदती है, लेकिन राजस्थान में अच्छी गुणवत्ता वाले वर्जिन पल्प पेपर की आड़ में डेढ़ गुना महंगा कागज खरीदने का खेल खेला जा रहा है ।
कागज की खरीददारी पर मंत्री दिलावर का बयान
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कागज की खरीदी के बारे में बोलते हुए कहा कि , बाजार में कई क्वालिटी का पेपर मौजूद है। लेकिन जो पेपर बच्चों के लिए बेहतर है हम वही खरीद रहे हैं।
विशेष कमेटी का कोई फायदा नहीं
मंडल ने टेंडर प्रक्रिया के लिए कुछ नियम बनाए हैं, जिनके अनुसार कोई भी मिल बाजार में कागज की कीमतें कम होने पर नए घटे हुए दाम में ही कागज बेचेगी। पाठयपुस्तक मंडल बाजार के भाव से अपडेट रहे , इसके लिए एक विशेष कमेटी बनाई हुई है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है । कमेटी के होने के बावजूद भी मंडल ने 2023 -24 में कागज 91.10 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीदी गई, जबकि उस समय कुछ मिलों ने लगभग 47 रूपए प्रति किलो के भाव से कागज बेचा था। यानी इस खरीददारी में प्रति किलो लगभग 44 रूपए का नुकसान हुआ। पिछले साल विभाग ने लगभग 21.5 हजार मेट्रिक टन कागज खरीदा था। इस हिसाब से 94 करोड़ से ज्यादा का नुकसान सिर्फ एक साल में हुआ। अब सवाल ये है कि किताबों में ये घालमेल कब तक जारी रहता है।
[रिपोर्ट- कोमल कुमावत]