भजनलाल सरकार ने की पंचायतों के पुनर्गठन की तैयारी
2025 राजस्थान में सियासी लिहाज से बेहद खास रहने वाला है। बीते साल 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने सत्ताधारी दल बीजेपी को झटका दिया। वहीं, उपचुनाव में जनता ने भजनलाल सरकार के काम पर मुहर लगा दी। अब राजनीतिक दलों की निगाहें पंचायत चुनाव पर हैं। वन स्टेट-वन इलेक्शन के तहत प्रदेश में एक साथ चुनाव कराने की तैयारी हैं। भजनलाल सरकार ने पंचायतों के पुनर्गठन की तैयारी भी शुरू कर दी है। पंचायतों को 3 श्रेणी में बांटते हुए इसकी गाइडलाइन जारी की जा चुकी है। पंचायतों के पुनर्गठन के बाद ही पंचायत चुनाव होंगे। ऐसे में इस साल सियासी उठापटक होने की पूरी संभावना है।
2025 में भी बड़ी सियासी उठापटक
प्रदेश की 7463 ग्राम पंचायत में सरपंच और वार्ड पंचों के पांच साल का कार्यकाल जनवरी-फरवरी 2025 में पूरा होने वाला है। इसमें 6759 ग्राम पंचायतों का नए साल की शुरुआत में जनवरी में और 704 का फरवरी में कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। भजनलाल सरकार की कैबिनेट बैठक ने पंचायत चुनाव को लेकर फैसला किया है। प्रदेश सरकार ग्राम पंचायतों का भी पुनर्गठन करेगी। पंचायतों को पुनर्गठन के लिए तीन श्रेणी में बांटा गया है। पुनर्गठन का प्रस्ताव बीस दिन में कलक्टर को भेजा जा सकेगा। इसके बाद तीस दिन में कलक्टर सरकार को प्रस्ताव भेजेंगे। पहले 40 ग्राम पंचायतों को मिलाकर पंचायत समिति बनती थी, और अब यह संख्या 40 से कम कर 25 कर दी गई है। पंचायतों के पुनर्गठन के बाद ही पंचायत चुनाव होंगे। आपको बता दें की पंचायत समितियों और जिला परिषदों का भी पुनर्गठन होगा। ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन में जनसंख्या की बाध्यता में भी छूट दी जाएगी। एक पंचायत समिति में भी वार्डों की संख्या 40 से घटाकर 25 की गई है।
11000 सरपंचों के लिए होगा चुनावी घमासान
सरकार की मंशा है कि प्रदेश में 291 नगर निकाय और 7 हजार पंचायत समिति में एक साथ चुनाव करवाए जाएं। जिसमें 1 लाख से ज्यादा पंच और करीब 11000 सरपंच के पद भी शामिल है। अगर बात करें पंचायत में समिति सदस्य की तो उनकी संख्या भी 7000 है। और जिला पंचायत सदस्य की संख्या 1000 है। इसके साथ ही 7500 पार्षद भी चुने जाने हैं। यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा कई बार यह पहले भी कह चुके हैं कि राजस्थान में हर हाल में वन स्टेट वन इलेक्शन लागू किया जाएगा झाबर सिंह खर्रा का कहना है कि सरकार का विचार है सभी निकायों में वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत ही चुनाव करवाया जाए। यही वजह है कि 49 नगर निकायों के निर्वाचित बोर्ड के कार्यकाल खत्म होने के बाद भी प्रशंसकों की नियुक्ति की जा चुकी है।
क्षेत्रीय दल बीएपी और आरएलपी करवाएंगे अपनी ताकत का एहसास
सभी चुनाव एक साथ करवाना सरकार के लिए भी आसान नहीं होने वाला है। यदि ऐसा होता है तो 11 नगर निगम, 33 नगर परिषद और 169 नगर पालिकाओं समेत 11 हजार ग्राम पंचायतों में भी चुनाव कराने होंगे। इन सबके लिए प्रशासनिक स्तर पर बड़ी व्यवस्था करनी होगी। नगर निकायों के सीमांकन को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। परिसीमन का काम 1 मार्च से पहले पूरा होना था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 21 मार्च कर दिया गया है। ऐसे में कई सारे सवाल अभी भी बरकरार है। गांव की सरकार और शहरी सरकार के लिए भाजपा कांग्रेस के साथ-साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी जैसे दल भी इन चुनावों में अपनी ताकत का एहसास करायेंगे। भारत आदिवासी पार्टी ने प्रदेशभर में पार्टी के विस्तार की योजना पर काम करना भी शुरू कर दिया है। दक्षिण राजस्थान में अपनी पकड़ मजबूत करती जा रही भारत आदिवासी पार्टी के लिए पंचायती राज चुनाव काफी अहम होने वाले हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सर्वेसर्वा हनुमान बेनीवाल की पार्टी विधानसभा में प्रतिनिधित्व खोने के बाद ग्रामीण अचल में अपनी पेठ बनाने की तैयारी में जुट गई है। नागौर के साथ-साथ जाट बाहुल्य क्षेत्र में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के लिए यह एक बड़ा इम्तिहान भी साबित होने वाला है।