अजमेर ख्वाजा साहब की दरगाह के नीचे शिव मंदिर, क्या है दोनों पक्षों के दावे 

क्या अजमेर शरीफ दरगाह में पहले था शिव मंदिर, आखीर क्यों छिड़ा विवाद 

dargah

 

हिंदू सेना ने दावा किया है कि दरगाह के नीचे एक शिव मंदिर था

विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने को लेकर जमकर बवाल छिड़ा हुआ है। न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में इस विवाद से पारा उबाल पर है। इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की।  विष्णु गुप्ता की ओर से 38 पेज की याचिका दायर की गई है। याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब - अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला दिया गया। किताब में दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है। साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है। इस मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। 

अजमेर शरीफ दरगाह में हिंदू मंदिर होने की याचिका पर बवाल
दरअसल किताब में लिखा गया है की दरगाह के बुलंद दरवाजे की उत्तरी और तीसरी मंजिल पर छतरी बनी हुई है। यह छतरी किसी हिंदू इमारत के हिस्से से बनी हुई है। इसके साथ ही किताब में आगे लिखा है की छतरी के अंदर एक लाल रंग का पत्थर लगा हुआ है यह किसी जैन मंदिर का है। उसके बाद किताब के अगले पन्ने पर बुलंद दरवाजे और अंदर के आंगन के नीचे पुराने हिंदू मंदिर के तहखाने होने का जिक्र किया गया है। किताब में लिखा है कि यह कमरे आज भी वैसे ही है। इसे देखकर लगता है मानों किसी पुराने मंदिर की जगह पर दरगाह बनाई गई है। तहखाने के अंदर मंदिर में महादेव की छवि भी है। इस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार चंदन जलता था। लेकिन अब इस जगह को दरगाह की घड़ियाली के रूप में जाना जाता है।
हरबिलास शारदा ने 1892 में बतोर सब जज अजमेर के न्यायिक विभाग में काम करना शुरू किया था। 1894 में वह कश्मीर नगर पालिका के नगर आयुक्त भी चुने गए। 1925 में जोधपुर हाई कोर्ट में सीनियर जज रहे। शारदा ने ही बाल विवाह को रोकने के लिए असेंबली में बिल पेश किया था। 1929 में शारदा बिल के नाम से प्रसिद्ध यह बिल पास हुआ। और इसे 1930 में पूरे देश में लागू किया गया। 
विष्णु गुप्ता का कहना है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजे की बनावट हिंदू मंदिरों के दरवाजे की तरह है। दरगाह के ऊपरी भाग को देखेंगे तो यहां भी हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीज ही दिखते हैं। जहां भी शिव मंदिर होता है वहां पर पानी के झरने जरूर होते हैं और अजमेर दरगाह में भी ऐसा ही है। 
इतिहासकार डॉ. जाहरुल हसन शाहरिब की किताब ‘ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ के मुताबिक, मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म सन 1135 में ईरान के इस्फान शहर में हुआ था। 1149 में वो तालीम हासिल करने के लिए उज्बेकिस्तान के समरकंद और बुखारा चले गए। यहां उन्होंने 1155 तक शिक्षा हासिल की। इसके बाद वे चिश्ती ऑर्डर के संत उस्मान हारूनी के साथ हज करने मक्का-मदीना गए। किताब के मुताबिक, वहां उन्हें पैगम्बर मोहम्मद साहब का ख्वाब आया। उन्होंने मोइनुद्दीन चिश्ती को दिल्ली जाने का आदेश दिया। यहां से वे सीधे दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। 1236 में मोइनुद्दीन चिश्ती के निधन के बाद अजमेर में उनका मकबरा बनाया गया। शुरुआत में यह एक छोटा सा मकबरा था। समय के साथ अलग-अलग लोगों ने दरगाह का निर्माण कराया। मांडू के बादशाह महमूद खिलजी ने यहां एक मस्जिद बनवाई। इसके बाद मुगल सल्तनत में भी यहां निर्माण कार्य हुए। मोहम्मद बिन तुगलक और शेरशाह सूरी जैसे बादशाहों ने भी दरगाह को संरक्षण दिया।
अजमेर दरगाह में तीन दरवाजे हैं। बुलंद दरवाजा जिसका निर्माण 1193 में सुल्तान महमूद खिलजी ने करवाया था। यह दरवाजा उर्स के मौके पर ही खुलता है। इस दौरान दरवाजे पर एक झंडा भी फहराया जाता है। दूसरा है जन्नती दरवाजा जिसका निर्माण चौदहवी सदी में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था। इस दरवाजे का निर्माण चांदी से किया गया है। यह दरवाजा साल में चार बार खोला जाता है।  तीसरा दरवाजा है निजाम गेट जिसका निर्माण 1911 में हैदराबाद के निजाम अमीर मीर उस्मान अली ने करवाया था। यह दरवाजा दरगाह में प्रवेश के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

अजमेर दरगाह में शिव मंदिर पर क्या हैं दोनों पक्षों के दावे
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इसका विरोध जताया था और कहा था की मामले से विवाद बढ़ सकता है। उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा भी ऐसे फैसले का सीधा परिणाम थी। मुफ्ती ने आगे कहा कि देश के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बदौलत एक भानुमती का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों के बारे में विवादास्पद बहस छिड़ गई है। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कोर्ट के फैसले से खासी नाराजगी जताई थी। सिब्बल ने कहा था 'अजमेर दरगाह में शिव मंदिर... हम इस देश को कहां ले जा रहे हैं? और क्यों? राजनीतिक लाभ के लिए!' एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था अगर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का पालन किया जाता है, तो देश संविधान के अनुसार चलेगा।
अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती की इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा कि सन 1950 में दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज एक्ट की कवायद चल रही है, उस दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज गुलाम हसन की अध्यक्षता में इंक्वायरी कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट पार्लियामेंट में जमा हुई है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में दरगाह का पूरा इतिहास भी था।