काशी में विजयादशमी: शस्त्र पूजा का अनोखा आयोजन

दशहरा 2024: काशी विश्वनाथ धाम में विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा, पहली बार हुआ आयोजन

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Edited by: Kritika

Dussehra 2024 : विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, के अवसर पर काशी विश्वनाथ धाम में एक अनूठा और भव्य समारोह आयोजित किया गया। इस विशेष कार्यक्रम में शैव परंपरा के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की गई, जिसमें धनुष, त्रिशूल, तलवार और परशु जैसे प्रमुख शस्त्र शामिल थे। यह पहली बार है जब काशी विश्वनाथ धाम में शक्ति उपासना के पर्व नवरात्रि के समापन पर इस प्रकार का भव्य शस्त्र पूजन समारोह आयोजित किया गया है।

दशमी तिथि के साथ शारदीय नवरात्रि के समापन पर, देशभर में विजयादशमी का त्योहार मनाया जा रहा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों में रावण का दहन किया जाता है और शस्त्रों की पूजा की जाती है। 

काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी, विश्वभूषण मिश्र, ने विद्वान ब्राह्मणों की उपस्थिति में विधि-विधान के साथ शैव शस्त्रों की पूजा की। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विजयादशमी पर शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन घरों और सैन्य ठिकानों पर शस्त्रों का पूजन किया जाता है।

शिव पुराण के अनुसार, धनुष और त्रिशूल के निर्माणकर्ता भगवान शिव ही हैं। उन्होंने सबसे पहले धनुष का आविष्कार किया और उसका उपयोग किया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रभु श्री राम ने भी नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी की पूजा की और दसवें दिन, यानी दशहरा पर, शस्त्र पूजा कर रावण का वध किया था।

इस आयोजन के दौरान शाम को पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाएगा। इसके लिए पूर्वांचल से प्रशिक्षित शस्त्र चलाने वाले लोगों को आमंत्रित किया गया है, जिसमें लाठी, भाला, त्रिशूल और तलवार सहित सभी पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाएगा।

दशहरे के दिन, पुराने समय में राजा-महाराजा भी अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए पूरी विधि-विधान से शस्त्र पूजा करते थे। शस्त्र पूजा के दौरान सभी शस्त्रों को एकत्रित किया जाता है, उन पर फूल चढ़ाए जाते हैं और रोली लगाई जाती है। इसके बाद, उन पर कलावा बांधकर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उनकी पूजा की जाती है।

इस प्रकार, काशी विश्वनाथ धाम में आयोजित यह विशेष शस्त्र पूजन समारोह विजयादशमी के पर्व की महत्ता को और भी बढ़ा देता है, और यह दर्शाता है कि आज भी हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएं जीवित हैं।