बीते वर्ष पहली बार राज्यसभा में हुआ था पेश

जल्द मुफ़्त होगा इंटरनेट, संसद में प्रस्ताव पर चर्चा

अब इंटरनेट होगा फ्री

क्या हो अगर इंटरनेट सभी के लिए मुफ्त हो जाए? क्या हो अगर पूरे दिन फोन में ऑनलाइन विडियोज स्क्रॉल करने के बाद भी आपको इंटरनेट से जुड़े रहने के लिए कोई कीमत ना चुकानी पड़े?

संभव है की आने वाले समय में आपको इन सारे सवालों के जवाब मिल जाएं।
बीते वर्ष दिसंबर में राज्यसभा सदस्य वी. शिवदासन ने राज्यसभा में प्रस्ताव पेश किया था कि प्रत्येक देशवासी को इंटरनेट मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सरकार को इंटरनेट सेवाएं मुफ्त कर देनी चाहिए। हाल ही में दूरसंचार मंत्री जोतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा महासचिव को सूचित कर राष्ट्रपति से इस बारे में विचार करने की गुजारिश करी है। कुछ समय पहले सरकार ने भी इस प्रस्ताव पर विचार करने की मंजूरी दे दी है। आधुनिकता के इस दौर में इंटरनेट का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है की 2020 में इंटरनेट को अनुच्छेद 21 के तहत मूलभूत अधिकारों की सूची में शामिल कर दिया गया था। 
वर्तमान समय में यह प्रस्ताव इसलिए भी मुख्य बन जाता है क्योंकि अप्रैल माह की शुरुआत में ही अधिकतर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों ने अपने रिचार्ज प्लान दरों में लगभग 25 प्रतिशत का इज़ाफा कर दिया था। कीमतों में अचानक आई इस बढ़ोतरी से देश के मिजाज़ में कुछ गर्मी दिखाई पड़ रही थी। 
यदि भविष्य में यह प्रस्ताव पारित किया जाता है तो देश के पिछड़े क्षेत्रों के निवासियों को इंटरनेट से जुड़ने में मदद मिलेगी। इंटरनेट सेवाओं के मुफ्त हो जाने से लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने में भी आसानी होगी। इसके साथ ही इंटरनेट सुलभ हो जाने से विद्यार्थी, युवा एवं ग्रामीण वर्ग के लोगों का जीवन भी सरल हो जाएगा। इंटरनेट से जुड़ा होने के कारण लोग सरकारी योजनाओं का भी उचित लाभ उठा सकेंगे। 
यह प्रस्ताव पारित करने से पहले सरकार को कुछ विषयों पर भी खास ध्यान देना होगा। देश के हर कोने तक इंटरनेट सेवा पहुंचाने के लिए सर्विस प्रोवाइडर को इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक भारी धनराशि खर्च करनी पड़ेगी। मगर कीमतें माफ होने के बाद इस राशि को वापस पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अभी तक माना जा रहा है की सरकार पिछड़े वर्ग एवं किसी खास आय वर्ग के लोगों के लिए इंटरनेट सेवा को सब्सिडाइज कर देगी। हालांकि यह साफ नहीं है की इस विशेष वर्ग में शामिल होने की क्या शर्तें होंगी।
यदि लागतों के समीकरण में बात करें तो इस तरह के किसी प्रस्ताव का पारित होना मुश्किल है। इस स्थिति में सरकार विकल्प के तौर पर उपग्रह आधारित सेवाओं का रुख कर सकती है। वर्तमान में स्टारलिंक और कुइपर जैसी कंपनियां इस तकनीक की सहायता से किफायती दरों में इंटरनेट सेवा की दिशा में काम कर रही हैं।