जयपुर: राजस्थान में सियासत का खेल जारी है| गहलोत सरकार की इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना का नाम अब बदलकर हो गया है मुख्यमंत्री शहरी रोजगार गारंटी योजना ! भजनलाल सरकार ने सत्ता में आने के बाद 10 योजनाओं के नाम बदल दिए हैं। क्या ये सिर्फ एक नाम बदलने का मामला है, या इसके पीछे गहरी राजनीति छुपी है? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं|
सबसे पहले इंदिरा स्मार्ट फोन योजना बंद की
"राजस्थान की राजनीति में योजनाओं के नाम बदलने का इतिहास पुराना है। लेकिन इस बार, इंदिरा गांधी के नाम से जुड़ी योजनाओं को चुन-चुनकर हटाया जा रहा है।11 महीने में भजनलाल सरकार ने इंदिरा स्मार्ट फोन योजना को बंद कर दिया। चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का नाम बदलकर आयुष्मान आरोग्य योजना कर दिया। इंदिरा रसोई योजना को फिर से अन्नपूर्णा योजना नाम दे दिया और अब गहलोत सरकार की सबसे चर्चित योजना, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना का नाम बदल दिया गया है। सवाल ये है कि क्या ये जनता की भलाई के लिए किया जा रहा है या सिर्फ राजनीतिक बदले की भावना से?"
"गहलोत सरकार ने इस योजना की शुरुआत सितंबर 2022 में की थी। ये योजना शहरी बेरोजगारों को आर्थिक सहारा देने के लिए बनाई गई थी। इसके तहत 18 से 60 साल की उम्र के नागरिक जन आधार कार्ड बनवाकर 100 दिन का रोजगार पा सकते थे। इस योजना में सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण, पार्कों का रखरखाव, फुटपाथ और डिवाइडर की सफाई और नर्सरी तैयार करना जैसे काम शामिल थे।हर साल इस योजना पर 800 करोड़ रुपये खर्च होते थे। योजना मनरेगा की तर्ज पर बनाई गई थी, ताकि शहरी गरीबों को भी गांवों की तरह काम मिल सके।
3 योजनाओं को मिलाकर बनाई एक योजना
भाजपा सरकार ने सत्ता में आने के बाद कई योजनाओं का नाम बदला है। खास बात ये है कि अधिकतर नाम इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से जुड़े हुए थे। इंदिरा स्मार्ट फोन योजना – बंद कर दी गई। चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का नाम बदलकर आयुष्मान योजना कर दिया गया।इंदिरा रसोई योजना फिर से अन्नपूर्णा योजना बनी।राजीव गांधी स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस अब स्वामी विवेकानंद स्कॉलरशिप से जानी जाएगी ।वहीं राजीव गांधी जल स्वावलंबन योजना – अब मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना कहलाएगी। इतना ही नहीं, बीजेपी सरकार ने इंदिरा महिला शक्ति योजना जैसी तीन योजनाओं को मिलाकर कालीबाई भील संबल योजना बनाई। बीजेपी का दावा है कि यह योजनाओं को और प्रभावी बनाने के लिए किया जा रहा है। लेकिन कांग्रेस इसे इंदिरा गांधी की विरासत मिटाने की साजिश कह रही है। पूर्व मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने तीखा हमला करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी मजबूती और विकास की पहचान थीं। उन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उनका नाम योजनाओं से हटाना इतिहास को मिटाने की कोशिश है। उन्होंने आगे कहा ‘जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, तब से इस योजना में किसी को भी रोजगार नहीं मिला। जब रोजगार देना ही नहीं था, तो योजना का नाम बदलने का क्या औचित्य है?’
मजबूती और विकास से इंदिरा की पहचान :खाचारियावास
कांग्रेस का कहना है कि इंदिरा गांधी का नाम हटाकर बीजेपी उनके योगदान का अपमान कर रही है। उन्होंने बांग्लादेश का निर्माण किया, देश को मजबूत किया और आज दुनिया भी उन्हें आयरन लेडी के नाम से जानती है।"दूसरी तरफ बीजेपी का कहना है कि ये सिर्फ नाम बदलने की बात नहीं है। पार्टी का दावा है कि नाम बदलने से योजनाओं को बेहतर पहचान मिलती है और लोगों तक सीधा जुड़ाव बनता है लेकिन सच ये है कि नाम बदलने के अलावा किसी भी योजना में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह ‘विचारधारा की राजनीति’ है या कुछ और?" योजनाओं के नाम बदलने की राजनीति कोई नई बात नहीं है। वसुंधरा राजे सरकार के दौरान लाई गई अन्नपूर्णा योजना का नाम बदलकर गहलोत सरकार ने इंदिरा रसोई योजना रखा था। अब बीजेपी ने इसे फिर से अन्नपूर्णा योजना नाम दे दिया है।
योजनाओं के नाम बदलने से क्या उनका उद्देश्य बदलता है? या यह सिर्फ राजनीतिक दबदबा बनाने का एक तरीका है? यह सवाल जनता को सोचने पर मजबूर करता है। योजनाओं के नाम बदलने का यह खेल जारी है। कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। लेकिन असल सवाल यह है: क्या नाम बदलने से योजनाओं का प्रभाव बढ़ेगा? क्या इससे जनता को ज्यादा लाभ मिलेगा? या यह सिर्फ राजनीतिक ब्रांडिंग का एक तरीका है?
राजस्थान में योजनाओं का नाम बदलने की सियासत तेज हो रही है। लेकिन इसका असल फायदा या नुकसान कौन उठा रहा है – जनता या राजनेता? अपनी राय हमें कमेंट्स में जरूर बताएं।
[ रिपोर्ट : अनुश्री यादव ]