न्यूयॉर्क के एक इंस्टिट्यूट में बोलते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने चीन की हरकतों को लेकर खूब सवाल उठाए। इसी के साथ उन्होंने वैश्विक विकास और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे विषयों ओर भारत के रुख के बारे में भी बात की।
अमेरिका : भारत और चीन के बीच पिछले कुछ समय में संबंध काफी बिगड़े हैं। गुरुवार को न्यूयॉर्क में एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में बोलते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन को जमकर खरी-खोटी सुनाई । उन्होंने कोरोना काल में चीन के बिगड़े हुए सैन्य बर्ताव को लेकर भी सवाल उठाए। इसके अलावा उन्होंने ड्रैगन को भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए नसीहत दी।
विश्व के अलग अलग हिस्सों में हो रहे बदलावों के बारे में बोलते हुए एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। दुनिया के इन बदलावों में एशिया सबसे आगे है। और एशिया के अंदर भारत इन बदलावों का नेतृत्व कर रहा है। इन बदलावों के कारण वैश्विक ढांचा भी बहुत तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। एशिया वैश्विक परिवर्तन के अग्रणी छोर पर है। इसी परिवर्तन से वैश्विक बदलावों की नींव विकसित हो रही है।
एशिया के भविष्य पर टिका है दुनिया का भविष्य : एस जयशंकर
सम्मेलन मे बोलते हुए एस जयशंकर ने कहा कि, "एशिया के भविष्य के लिए भारत और चीन के संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। बहुध्रुवीय दुनिया बनाने के लिए एशिया को भी बहुध्रुवीय होना होगा । भारत और चीन के संबंध केवल एशिया ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के भविष्य को प्रभावित करेंगे। हम लंबे समय से आसियान को केंद्र मान कर ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी पर काम कर रहें हैं । रणनीतिक विषय के रूप में हिन्द-प्रशांत की उपस्थिति ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी की सफलता को दर्शाता है।"
कोरोना में बिगड़ी गस्त व्यवस्था
एस जयशंकर ने 2020 में चीन के सैन्य रुख को लेकर चिंता जाहिर की । उन्होंने कहा कि 2020 के बाद दोनों देशों की सीमा पर गश्त व्यवस्था गड़बड़ा गई थी। विदेश मंत्री ने कहा कि, "चीन ने कोरोना काल में सीमा पर अतिरिक्त सैन्य बाल की तैनाती कर पिछले समझौतों का उल्लंघन किया। चीन के इस कदम से किसी अनहोनी की आशंका थी। दोनों देशों की सेना के बीच झड़प होना इसी अनहोनी का प्रतीक था। इस झड़प में दोनों ओर के कई सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। इस दुर्घटना से दोनों देशों के संबंध काफी प्रभावित हुए हैं।" एस जयशंकर ने साफ किया कि भारत के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए चीन को भारत के साथ शांति स्थापित करनी होगी।
चीन के साथ हमारा इतिहास काफी कठिन
एस जयशंकर ने कहा कि, "चीन के साथ हमारा इतिहास बेहद कठिन रहा है। स्पष्ट समझौतों के बाद भी चीन ने कोविद काल में पूर्व स्थापित समझौतों का उल्लंघन किया जिसके कारण एलएसी पर दोनों ही देशों को सीमाबल का भारी नुकसान उठाना पड़ा। वर्तमान में दोनों देशों के बीच 75 प्रतिशत से ज्यादा विवाद हल हो चुके हैं। पिछले कुछ समय में हम सैनिकों की वापसी और टकराव के बिंदुओं को सुलझाने में सफल रहे हैं। मगर अभी भी कुछ मुद्दों पर दोनों देशों की सरकारें हाल खोज रही हैं। इनमें से गश्त के मुद्दे सुलझाना सबसे जरूरी है।" उन्होंने न्यूयॉर्क में बोलते हुए बीजिंग को संदेश दिया कि अगर भारत के साथ संबंध सुधारने हैं तो पहले दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करो।
युद्ध विवाद सुलझाने का तरीका नहीं है
रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में बोलते हुए एस जयशंकर ने कहा कि युद्ध विवाद सुलझाने के तरीका नहीं है। युद्ध के विषय में भारत के रुख को बताते हुए जयशंकर ने कहा कि युद्ध के बीच भारत दोनों देशों की सरकारों के साथ बातचीत कर रहा है। हालांकि, जयशंकर ने साफ किया है कि भारत इस युद्ध के बारे में किसी भी पक्ष को कोई सुझाव नहीं दे रहा है। भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच युद्ध समाप्त करते हुए जल्द से जल्द शांति स्थापित की जाए।
विकास के अवसरों में भागीदार हैं भारत-चीन : चीनी राजदूत
वहीं भारत और चीन के बीच संबंधों पर बोलते हुए भारत में चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने कहा कि, "हमें सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और आपसी सम्मान और आपसी विश्वास को बढ़ाना चाहिए। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महत्वपूर्ण सहमति पर पहुंचे हैं कि चीन और भारत एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी या खतरा नहीं हैं, बल्कि सहयोग और विकास के अवसरों में भागीदार हैं। यह हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है। दोनों नेता जिस महत्वपूर्ण सहमति पर पहुंचे हैं, हमें उसे दृढ़ता से लागू करना चाहिए, एक दूसरे के विकास और रणनीतिक इरादों को सही ढंग से देखना चाहिए और एक दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं को परस्पर समायोजित करना चाहिए।"