राजस्थान : सार्वजनिक प्रन्यास मंडल, जिसे देवस्थान बोर्ड के नाम से भी जाना जाता है, राज्य के मंदिरों की बेहतर व्यवस्था, उत्थान और पुजारियों के संरक्षण के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इसमें राजधानी जयपुर सहित पूरे प्रदेश के मंदिर शामिल हैं। हालांकि, यह बोर्ड पिछले पांच साल से निष्क्रिय पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप मंदिरों की जमीन पर कब्जे और कुछ मंदिरों में पुजारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद, राज्य सरकार ने अब तक इस बोर्ड को पुनः सक्रिय करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
इस मामले में देवस्थान विभाग के मंत्री जोराराम कुमावत ने बयान दिया कि यह मुद्दा मुख्यमंत्री स्तर का है, और इसका जवाब वही देंगे। देवस्थान बोर्ड के अंतर्गत मंदिरों के विकास, व्यवस्था, उत्थान, मंदिर माफी की जमीन-संपत्ति, और पुजारियों के संरक्षण की जिम्मेदारी है। 2017 में पंडित एस.डी. शर्मा को बीजेपी सरकार द्वारा अंतिम बार बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, लेकिन कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं और राज्य मंत्री का दर्जा नहीं मिला।
जब कांग्रेस सरकार ने नया बोर्ड अध्यक्ष नियुक्त किया, तो एस.डी. शर्मा ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और स्टे ऑर्डर ले आए, जिससे बोर्ड फिर से निष्क्रिय हो गया। बोर्ड के नियमों के अनुसार, अध्यक्ष और सदस्यों को पांच साल के कार्यकाल से पहले नहीं हटाया जा सकता। जब पांच साल पूरे हुए, तब चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस सरकार ने सालासर बालाजी के महंत भंवर पुजारी को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया। लेकिन इसके बाद सरकार बदल गई, और एक बार फिर बोर्ड का कार्य ठप हो गया।
वर्तमान में, नए अध्यक्ष कार्यालय, अधिकार और राज्य मंत्री के दर्जे का इंतजार कर रहे हैं। बीजेपी सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया है, और देवस्थान बोर्ड को अधिकार और कार्यालय नहीं सौंपे हैं। मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि पिछली सरकार ने देवस्थान विभाग की अनदेखी की थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने 52 से ज्यादा मंदिरों के विकास के लिए बजट की घोषणा की है। उन्होंने यह भी कहा कि मंदिरों में कॉरिडोर बनाने, परिक्रमा मार्ग और सुविधाएं विकसित करने जैसे कार्य किए जाएंगे। मंदिरों की संपत्ति से संबंधित मामलों में, विभाग 593 मंदिरों की देखरेख करता है, और कब्जा हटाने के लिए कई मुकदमे चल रहे हैं।
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