एस जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा, द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव की उम्मीद नहीं

विदेश मंत्री एस जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा,दोनों देशों के रिश्तों में क्या आएगा बदलाव ?

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Edited by : Kritika

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, करीब एक दशक के बाद, पाकिस्तान का दौरा करने जा रहे हैं। यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के सिलसिले में होगी, जो 15 और 16 अक्टूबर को इस्लामाबाद में आयोजित की जाएगी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस दौरे की पुष्टि की और कहा कि यह दौरा एससीओ मीटिंग के लिए है, जिससे अधिक न सोचें।

दौरे का महत्व

प्रोफेसर हर्ष वी पंत, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के उपाध्यक्ष, का मानना है कि यह दौरा भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन एससीओ के संदर्भ में इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आंतरिक परिस्थितियों में सुधार नहीं हुआ है और वहां सत्ता के केंद्र को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है, जिससे भारत के लिए पाकिस्तान के साथ सीधा संवाद करना कठिन हो गया है।

उन्होंने कहा, “अगर प्रधानमंत्री खुद पाकिस्तान जाते, तो इसका एक अलग संदेश होता, लेकिन उनकी जगह विदेश मंत्री जा रहे हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत उच्च-स्तरीय बातचीत के लिए तैयार नहीं है।”

भारत का बहुपक्षीय दृष्टिकोण

विदेश मंत्री का दौरा इस बात का संकेत है कि भारत एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए तत्पर है। प्रोफेसर पंत का कहना है कि भारत नहीं चाहता कि इसके मित्र देश भारत-पाकिस्तान विवादों के कारण एससीओ में किसी प्रकार की अड़चन महसूस करें।

वॉशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर थिंक टैंक में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के निदेशक माइकल कुगेलमैन भी इस दौरे को द्विपक्षीय संबंधों से ज्यादा बहुपक्षीय कूटनीति के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह यात्रा भारत की एससीओ के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है, फिर भी भारत-पाकिस्तान के संबंधों में इसके महत्व को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।हालांकि, विदेश मंत्री एस जयशंकर का पाकिस्तान दौरा एक महत्वपूर्ण अवसर है, लेकिन इसके जरिए भारत की द्विपक्षीय कूटनीति में कोई बड़ा बदलाव आने की संभावना नहीं है। यह यात्रा भारत की बहुपक्षीय संलग्नता को उजागर करती है, जबकि उच्च-स्तरीय बातचीत की कमी का संकेत भी देती है।