अब नहीं बनेगी फैक्ट चेकिंग यूनिट, हाईकोर्ट ने संशोधनों को असंवैधानिक बता किया खारिज

आईटी ऐक्ट, 2021 संशोधन हुआ खारिज, केंद्र सरकार अब नहीं बना पाएगी फ़ैक्ट चेकिंग यूनिट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईटी नियम, 2021 में किये गए संशोधनों को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया है। कोर्ट की टाइ-ब्रैकर बेंच ने इसे खारिज कर दिया। 
 

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आईटी नियम, 2021 में किये गए संशोधनों को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया। ये संशोधन केंद्र सरकार को सरकारी कामकाज से जुड़े ऑनलाइन कंटेन्ट की पहचान और उसे खारिज करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने की शक्ति देते थे। आईटी नियम संशोधनों के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस अतुल चंदुरकर की टाइ-ब्रैकर बेंच ने इन संशोधनों को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि ये संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करते हैं। 

फर्जी, झूठ और भ्रामक शब्द को परिभाषित ना करना गलत 

जस्टिस अतुल चंदुरकर की टाई-ब्रेकर बेंच ने कहा कि, "मेरा मानना ​​है कि संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं। मैंने मामले पर विस्तार से विचार किया है। विवादित नियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन करते हैं। " उन्होंने कहा कि नियमों में फर्जी, भ्रामक और झूठ शब्दों को परिभाषित ना करना गलत है। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने आईटी एक्ट में संशोधन को अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करने वाला बताया। 

धारा 79 के उल्लंघन की थी याचिका 

केंद्र सरकार ने 2023 में सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 (आईटी नियम 2021) में संशोधन किया था। इस संशोधन के नियम (3) से केंद्र सरकार को झूठी ऑनलाइन खबरों की पहचान के लिए फैक्ट चेक यूनिट स्थापना का अधिकार मिलता था। इसमें सामने आने पर यूजर को आलोचना और कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ता था। मशहूर स्टैन्ड-उप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने अन्य याचिकाकर्ताओं के साथ मिलकर इन संशोधनों के खिलाफ याचिका दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि ये संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम धारा 79 का उल्लंघन कर रहे हैं। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अलग-अलग दिया था फैसला 

इसी मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी वर्ष 2024 में जस्टिस पटेल ने कहा था कि, "प्रस्तावित फैक्ट चेक यूनिट ऑलिने और प्रिन्ट कंटेन्ट केबिछलग-अलग व्यवहार के कारण मौलिक अधिकारों से जुड़े अनुच्छेद (19)(जी) का उल्लंघन करती है।" वहीं दूसरी ओर जस्टिस गोखले का मानना था कि, "आईटी नियम संशोधन किसी तरह से असंवैधानिक नहीं था। याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए सभी आरोप निराधार हैं। यह संशोधन ना तो संविधान का उल्लंघन करते हैं और ना ही ये उपयोगकर्ताओं के लिए कोई दंडात्मक कार्यवाही का सुझाव देते हैं।" 
बॉम्बे हाईकोर्ट के दोनों फैसले अलग आने पर यह मामला टाइ-ब्रेकर बेंच के पास चला गया था जिसके बाद आज इस यूनिट को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। 

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी नोटिफिकेशन  पर रोक 

केंद्र सरकार ने आईटी रुल्स 2021 के तहत पीआइबी के अन्डर फक्त चेक यूनिट बनाने का नोटिफिकेशन जारी किया था। नोटिफिकेशन जारी होने के दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। तब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने ये फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को ये कहते हुए रोक दिया था कि ये नोटिफिकेशन बॉम्बे हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले के बीच आया। इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट की सुनवाई पूरी तक इस नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी थी। 

क्या है केंद्र सरकार की फैक्ट चेक यूनिट?

केंद्र सरकार ने पिछले साल इंटरमीडियरी गाइडलाइन और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड रूल्स, 2021 में संशोधन किया था। इन नियमों से इंटरमीडियरीज को नियंत्रित करते हैं जिसके अंतर्गत टेलिकॉम सर्विस, वेब होस्टिंग सर्विस, गूगल और फेसबुक-यूट्यूब प्लेटफॉर्म के सर्च इंजन आते हैं। इन संशोधित नियमों से केंद्र सरकार कोए के फैक्ट चेक यूनिट बनाने की शक्ति मिल गई। ये यूनिट केंद्र सरकार की कामकाज से जुड़ी खबरों को फर्जी, गलत या भ्रामक बताकर उसे हटा सकती थी। इसके अंतर्गत मीडिया वेबसाईट और वेब होस्टिंग जैसी सर्विस आती हैं। न्यूज वेबसाईट सीधे तौर पर इसके अंतर्गत नहीं आतीं।