कोचिंग हब से सुसाइड सिटी बना कोटा, एक और छात्र ने हारी जिंदगी की जंग 

सुनहरे सपनों के बीच दम तोड़ती जिंदगी, तीन महीने में 9 छात्रों ने हारी जंग

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सुनहरे सपनों की दोड़ में एक और छात्र अपनी जिंदगी की जंग हार गया। कोचिंग हब के नाम से मशहूर कोटो ने न जाने कितने सपनों को पंख दिए। तो वहीं सुनहरे भविष्य की चाह में पहुंचे कई छात्रों के हौसलों ने उड़ान भरने से पहले ही दम तोड़ दिया। कोटा हमेशा से मशहूर रहा है। यहां से निकल कर छात्र-छात्राओं ने राजस्थान ही नहीं बल्कि देश का भी नाम रोशन किया है। वहीं दूसरी और अब कोटा सुसाइड सिटी के नाम से मशहूर होने लगा है। छात्र आंखों में न जाने कितने सपने लिए यहां पहुंचते हैं और फिर धीरे-धीरे पढ़ाई के बोझ तले दबते चले जाते हैं और उनके सपने टूटने लगते हैं। ऐसे में कई स्टूडेंट्स अपनी जिंदगी की जंग भी हार जाते हैं। कोटा शहर के हर चौक चौराहे पर छात्रों की सफलता के बड़े-बड़े होर्डिग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग ही सब कुछ है। यह हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राइक तीस फीसदी से ऊपर रहता है। लेकिन कोटा का एक और सच भी है जो बेहद भयावह है। एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो नाकाम हो जाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते।

एक और छात्र ने मौत को लगाया गले 
कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा अब आत्महत्या का गढ़‌ भी बनता जा रहा है। जहां पर लगातार सुसाइड के कैसे बढ़ते जा रहे हैं। साल 2025 को शुरू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। उसके बावजूद भी 9 स्टूडेंट्स अपनी जिंदगी की जंग हार चुके हैं। यहां एक और आत्महत्या का मामला सामने आया जहां बिहार के नालंदा निवासी 17 वर्षीय हर्ष राज शंकर ने जवाहर नगर स्थित अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगा ली।  और आखिरकार शंकर अपनी जिंदगी की जंग हार गया। जिस हॉस्टल में छात्र ठहरा हुआ था, वहां एंटी-हेगिंग डिवाइस लगी होने के बावजूद छात्र ने आत्महत्या कर ली। लगातार बढ़ते ऐसे मामलों के चलते प्रशासन और कोचिंग संस्थान मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई उपाय कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद आत्महत्या की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। छात्र के पास पुलिस को कोई भी सुसाइड नोट नहीं मिला है।

सुनहरे सपनों के बीच कई जिंदगियों के सपनों ने तोड़ा दम
घरों से कोसों दूर बच्चे आंखों में सुनहरे कल का सपना लेकर कोटा का रुख करते हैं। यहां आते ही फंस जाते हैं, एक ऐसी जिंदगी में जो कभी उन्होंने जी ही नहीं। कोचिंग आने वाले कल के सितारे कबूतरखानेनूमा कमरों में दुबके हुए किताबों में उलझे रहते हैं। यह दबाव कई बार इतना बढ़ जाता है की स्टूडेंट अपने सोने और समझने की क्षमता भी भूल जाता है। छात्र अपने लिए पढ़ाई और मनोरंजन की गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय निर्धारित ही नहीं कर पाते, जिससे उन पर तनाव हावी होता है. ऊपर से 500-600 बच्चों का एक बैच होता है, जिसमें शिक्षक और छात्र का तो इंटरेक्शन हो ही नहीं पाता। अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में भी संकोच करता है। विषय को लेकर उसकी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं और धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ता जाता है। ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं। अपनी आंखों में हजारों सपने लेकर कोटा पहुंचा शंकर अपने सपनों को पूरा करने से पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह गया। शंकर ने सिस्टम के लिए कई सारे सवाल छोड़ दिए हैं। क्या पढ़ाई का बोझ इतना बढ़ गया कि शंकर जैसे न जाने कितने लोगों को अपनी जिंदगी की मौत में एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर बच्चे क्यों बचपन से आगे बढ़ जिंदगी खो रहे हैं।