उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने खोला मोर्चा, अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगा विपक्ष
विपक्ष राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए उच्च सदन को नोटिस दिया है।इसमें सभापति पर 'पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने' का आरोप लगाया गया है। नोटिस में विपक्षी समूह के 60 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर किए गए हैं।
राज्यसभा के 72 वर्ष के इतिहास में किसी सभापति के खिलाफ पहली बार अविश्वास का प्रस्ताव लाया गया है। लोकसभा अध्यक्ष के खिलाफ अब तक तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है। हालांकि धनखड़ को पद से हटाने के लिए इस प्रस्ताव को राज्यसभा के साथ लोकसभा में पारित कराना होगा। इसकी संभावना बेहद कम नजर आ रही है, क्योंकि दोनों ही सदनों में एनडीए को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। इसके अलावा कुछ दल तटस्थ रह सकते हैं।
72 वर्ष के इतिहास में पहली बार सामने आया अविश्वास प्रस्ताव
जॉर्ज सोरोस से जुड़े मुद्दे पर जिस तरह से राज्यसभा में हंगामा हुआ, उसे लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्य सभापति जगदीप धनखड़ से नाराज बताए जा रहे हैं। भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास में ये पहला मौका होगा। हालांकि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ ऐसे प्रस्ताव पेश करने की चर्चा और प्रयास पहले भी हुए हैं लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाए।
संसद की शीतकालीन सत्र के दौरान सत्ता पक्ष विपक्ष के बीच में लगातार गतिरोध जारी है। विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति पर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। विपक्षी जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाते हुए संविधान के आर्टिकल 67-बी के तहत पद से हटाने की मांग की है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश, प्रमोद तिवारी, तृणमूल कांग्रेस के नदीम उल हक और सागरिका घोष ने राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को प्रस्ताव सौंपा है। इस मामले को लेकर कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा की सभापति की ओर से भेदभाव पूर्ण तरीके से उच्च सदन के कार्यवाही का संचालक करने के कारण इंडिया ब्लॉक के सभी घटक दलों के पास अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई भी विकल्प नहीं था। जयराम रमेश ने कहा कि यह निर्णय बेहद ही कष्टकारी रहा है। लेकिन लोकतंत्र के हित में यह कदम उठाना पड़ा। सदन में विपक्षी पार्टियों को बोलते नहीं दिया जाता है। सभापति पक्षपात कर रहे हैं।
अब तक नहीं आया किसी राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
आपको बता दें की भले ही विपक्ष ने उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है लेकिन राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही जगह विपक्ष के पास प्राप्त संख्या नहीं है। राज्यसभा में 231 सदस्य हैं और प्रस्ताव पारित कराने के लिए 116 सदस्यों की जरूरत है। एनडीए के पास 121 सदस्य हैं। ऐसे में इंडिया ब्लॉक के पास सिर्फ 85 सदस्य है। वहीं 26 सदस्य ऐसे भी हैं जो किसी गठबंधन में नहीं है। इसी बीच बीजेडी ने प्रस्ताव से किनारा कर विपक्ष को एक बड़ा झटका दिया है। विपक्ष का मानना है कि प्रस्ताव पारित होना आसान नहीं है। लेकिन उनके पास कोई और दूसरा रास्ता नहीं है क्योंकि दोनों ही सदनों में विपक्ष की सुनी नहीं जा रही है। इस प्रस्ताव को लाने के बाद दोनों सदनों के अध्यक्ष को विपक्ष की बात सुननी पड़ेगी।
पहली बार उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
भारत में कभी भी उपराष्ट्रपति को अविश्वास प्रस्ताव का सामना कभी नहीं करना पड़ा है जबकि प्रधानमंत्री को इसका सामना कई बार करना पड़ा है। प्रधानमंत्रियों के खिलाफ 31 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए हैं। जिसमें से तीन बार प्रस्ताव पारित भी हुए हैं। जिसकी वजह से प्रधानमंत्री को अपने पद से हटना पड़ा है। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, प्रधानमंत्री एचडी देव गौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी को इसका शिकार होना पड़ा था।
हमारे देश में राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है। उपराष्ट्रपति के कार्यकाल का जिक्र भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में किया गया है। वह पांच साल के कार्यकाल के लिए पद पर रहते हैं। हालांकि, कार्यकाल खत्म होने के बावजूद अगला उपराष्ट्रपति बनने तक वह पद पर बने रह सकते हैं। संविधान में प्रावधान है कि राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति कार्य करेंगे। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपकर पद से इस्तीफा दे सकते हैं।