साइबर अपराधी है पुलिस से दो कदम आगे, अपराधियों ने फैलाया अपराध का जाल

आखिर कैसे हैं साइबर अपराधी पुलिस से दो कदम आगे!

saiber crime

 

जहां आपकी सोच खत्म होती है वहां से हमारी सोच शुरू होती है। कुछ ऐसा ही अंदाज है इन साइबर ठगों का। यही कारण है कि साइबर ठग पुलिस से दो कदम आगे होते हैं। साइबर अपराध के प्रति जागरूकता और सतर्कता बेहद जरूरी है। साइबर अपराधी तक पहुंचकर इन अपराधियों की धर पकड़ करना पुलिस के लिए आसान नहीं होता। यह शातिर बदमाश इतने शातिर है कि इन अपराधियों ने बैंक अधिकारियों और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों के कर्मचारियों से ऐसा गठजोड़ कर रखा है की यह पुलिस से दो कदम आगे ही रहते हैं। यही कारण होता है कि साइबर ठगी के अधिकतर मामलों में पुलिस को यदि समय पर सूचना मिल जाती है तो पुलिस अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर किए गए पीड़ित के पैसे होल्ड करवाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाती।

साइबर अपराधी पुलिस से दो कदम आगे 
कई ऐसे मामले हैं जिनमें पीड़ित शिकायत देता है और उसके बाद में पुलिस बैंक खातों में पैसे होल्ड करवाती है लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है। यही कारण होता है कि तब तक साइबर अपराधी बैंक खाते से साइबर ठगी कर एक बड़ी रकम खाते से निकल चुका होता है। और पुलिस जितने रुपए होल्ड करवाती है वह रुपए 15 दिन के भीतर कोर्ट के ऑर्डर के बाद पीड़ित को मिल जाते हैं। इसके बाद में अगर पीड़ित थाने में पहुंचकर एफआईआर करता है तो पुलिस इन मामलों में जिस नंबर से फोन आया था उन नंबर के जरिए और जिन बैंकों में पैसे ट्रांसफर किए गए थे उनके खाता धारकों की केवाईसी के आधार पर जांच शुरू करती हैं। जिसमे अधिकतम मामले ऐसे होते हैं जहां किसी फर्जी आईडी के ऊपर मोबाइल नंबर लिए गए होते हैं। इसके अलावा जिन खातों में यह रकम पहुंचती है उन खाता धारकों का पता भी नहीं होता की उनका खाता साइबर ठगी के लिए इस्तेमाल हो रहा है। जिसकी वजह से पुलिस के लिए आगे की कार्रवाई अंधेरी सुरंग जैसी हो जाती है। जहां पुलिस के लिए अपराधियों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है।

पांचवीं तक पढ़े नाबालिग भी कर रहे हैं ठगी
आपको यह जानकर हैरानी होगी की साइबर अपराध में पांचवीं और आठवीं तक पढ़े नाबालिग भी लगे हुए हैं। मेवात क्षेत्र में साइबर ठगी में लगे 178 किशोर पकड़े जा चुके हैं। भले ही यह कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन ठगी का तकनीकी ज्ञान इनके पास जांच करने वाले पुलिसकर्मियों से कई गुना अधिक था। कई थानों में लगे पुलिसकर्मी इतने परिपक्व तक नहीं है कि वह साइबर अपराध को ठीक से समझ सके। साइबर सेल बनाए तो गए हैं लेकिन, यह ज्यादातर जिला स्तर पर ही है। जब किसी ग्रामीण क्षेत्र में ऐसे मामले सामने आते हैं तो वहां पर तैनात पुलिसकर्मी को हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की जानकारी तक नहीं होती। पुलिस कर्मियों को यह तक नहीं पता होता की जांच शुरू करने के लिए किन बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए। कहीं ना कहीं देशव्यापी स्तर पर साइबर पुलिस का बेहतर नेटवर्क नहीं होना साइबर ठगों  की धर पकड़ में आड़े आता है। ऐसे मामलों में यदि अपराधी पकड़ा भी जाता है तो सजा दिलाने में कानून कमजोर पड़ जाता है। ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए सात साल की सजा तय की गई है, जो साइबर अपराधी के लिए कम है। इसके लिए सख्त सजा का प्रविधान होना चाहिए, क्योंकि अभी साइबर ठगों को कानून से भय नहीं है और वह साइबर ठगी की प्रयोगशाला बनाकर नए-नए तरीके से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं।

पुलिसकर्मी को नहीं होती सॉफ्टवेयर की जानकारी
इस मामले में पुलिस का कहना है कि साइबर लुटेरे नए-नए तरीके से अपराध को अंजाब दे रहे हैं। अपराधियों से निपटने के लिए साइबर क्राइम थानों में तैनात पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को और अधिक सक्षम किया जा रहा है। पुलिसकर्मियों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन एजेंसी की ओर से तैयार किए गए प्रतिबिंब ऐप के जरिए कई साइबर अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं। इस ऐप का इस्तेमाल सभी राज्यों की पुलिस कर रही है। पुलिस लगातार आमजन से अपील कर रही है कि लोग जागरूक बने। यदि आपके पास किसी अनजान नंबर से कॉल आता है या फिर व्हाट्सएप पर कॉल या मैसेज आता है तो उसे पर रिस्पॉन्ड नहीं करें। यदि बार-बार एक ही नंबर से कॉल आता है तो आप उस नंबर को ब्लॉक कर दें‌ और उसकी तुरंत शिकायत नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर करें। यदि आपके व्हाट्सएप पर या फिर मेल पर कोई भी लिंक आता है तो आप उस पर क्लिक ना करें। साइबर लुटेरों का यह नेटवर्क तोड़ने के लिए आमजन का जागरूक होना बेहद जरूरी है।