राजस्थान छात्रसंघ चुनाव पर लटकी है सियासी तलवार, क्या होगा भविष्य?

क्या इस वर्ष भी नहीं होगा राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव?


राजस्थान में पिछले दो वर्षों से छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए हैं। अभी भी इन चुनावों का भविष्य सरकार और छात्रों के बीच बने हुए विपरीत ध्रुवों की शर्तों पर टिका हुआ है। 

जयपुर : राजनीति की पहली सीढ़ी माना जाने वाला छात्रसंघ चुनाव राजस्थान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। राज्य में आखिरी बार 2022 में चुनावी मंच सजा था। पिछले दो सालों से लगातार छात्रनेता चुनावों को लेकर अपनी मांगों को अनसुना होते हुए देख रहे हैं। अगर इतिहास के गलियारे में झांके तो -  

1947 में राजस्थान विश्वविद्यालय की स्थापना होने के बाद 1960 के दशक में राजस्थान छात्रसंघ चुनाव अपनी जड़ें मजबूत करने लगा था। तब से आज तक राज्य की छात्र राजनीति ने जाने कितने ही अध्यायों को गुजरते देखा है। अपने शुरुआती दौर में छात्रसंघ राजनीति का मुख्य उद्देश्य स्थानीय प्रतिनिधित्व की सहायता से छात्रों के मुद्दे को सरकार के सामने लाना था। मगर 80 का दशक आते-आते राज्य में अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी। मौजदा दौर में एबीवीपी, एनएसयूआई एवं एसएफआई जैसे राजनीतिक दल राज्य में सक्रिय रूप से सुचारू हैं।

छात्रसंघ राजनीति का मुख्य उद्देश्य छात्रों के सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों को ध्यान में रखना है। अपने ही बीच से खड़े होते हुए छात्रनेता को छात्र भी खुद से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। वहीं इन चुनावों का हिस्सा बनकर छात्र भी चुनावी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से अवगत होते हैं। मगर इसी के साथ चुनावों में धन और बाहुबल से नुकसान के मामले भी सामने आते रहते हैं। इसी का एक उदहारण 2005 के चुनावी हंगामों में देखने को मिला था जिसके बाद 2006 के हाई कोर्ट फैसले के बाद चुनावों पर रोक लगा दी गई। इसके बाद चार सालों के लंबे अंतराल के बाद 2010 में राज्य दोबारा इन चुनावों का हिस्सा बना। इसके अलावा हर चुनाव में लिंगदेह कमिटी की शर्तों की भी धज्जियां उड़ाई जाती हैं। कमिटी शर्तों के अनुसार कोई भी प्रत्याशी अपने चुनावी प्रचार पर 5000 रुपये से ज्यादा धनराशि खर्च नहीं कर सकता है। मगर हर चुनाव में ये नेता लाखों के खर्च और लग्जरी गाड़ियों से अपना प्रचार-प्रसार करते हैं। 

पिछले दो वर्षों में चुनाव ना होने के बाद इस वर्ष भी ये चुनावी बिगुल अभी तक थमा हुआ ही नजर आ रहा है। बीते गुरुवार को राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर के बाहर छात्रों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा लाठीचार्ज करने के बाद लगभग दो दर्जन छात्र नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था। वहीं ये छात्रनेता भी समय-समय पर अपनी मांग सरकार तक पहुंचाने के लिए अनोखे प्रदर्शन करते रहते हैं। हाल में ही कई छात्र नेताओं ने अपने खून से राज्यपाल कलराज मिश्र एवं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नाम चिट्ठी लिखी थी। 

राजस्थान छात्र संघ चुनाव ने देश को अशोक गहलोत, हनुमान बेनीवाल, सीपी जोशी जैसे कई दिग्गज नेता दिए हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने भी मौजूदा भाजपा सरकार पर वार करते हुए कहा कि, "हमारी सरकार के समय पुलिस-प्रशासन के फीडबैक के कारण चुनावी वर्ष में छात्रसंघ चुनाव नहीं करवाए जा सके थे। सरकार द्वारा छात्रसंघ चुनावों की मांग कर रहे विद्यार्थियों पर जयपुर में किए गए बल प्रयोग की मैं कड़ी निंदा करता हूं। ऐसा करने के बजाय राज्य सरकार को उनकी मांगों को मानना चाहिए।" वहीं नागौर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी सरकार के सामने तत्काल प्रभाव से छात्रसंघ चुनाव करवाने की मांग रखी है। इसी दिशा में तीखा रुख अपनाते हुए शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने सरकार से सीधा सवाल किया है कि सरकार छात्रसंघ चुनाव करवाना चाहती है या नहीं? कुछ समय पहले छात्रनेता शुभम रेवाड़ ने कहा था कि सरकार ने चुनावों के नाम पर लगभग 35 लाख की राशि जमा वसूल तो कर ली है मगर अभी भी उन्होंने इस दिशा में कोई ठोस फैसला नहीं लिया है। इस स्थिति में छात्र स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।