Edited by: kritika
राजस्थान : सीकर जिले के दिवराला गांव में 1987 में घटित सती प्रकरण के 37 साल बाद बुधवार को विशेष अदालत ने फैसला सुनाया। अदालत ने सती प्रथा का महिमामंडन करने के आरोप में फंसे सभी आठ आरोपियों—महेंद्र सिंह, सर्वं सिंह, निहाल सिंह, जीतेंद्र सिंह, उदय सिंह, दशरथ सिंह, लक्ष्मण सिंह और भंवर सिंह—को बरी कर दिया है।
आरोपियों के वकील अमन चैन सिंह शेखावत ने बताया कि इन लोगों पर सती निवारण अधिनियम की धारा 5 के तहत केस दर्ज किया गया था, जिसके अनुसार सती प्रथा का महिमामंडन अपराध है। हालाँकि, अदालत ने यह निर्णय लिया कि रूप कँवर की सती होने की घटना उसकी अपनी स्वेच्छा से हुई थी और इस बारे में कोई भी पुख्ता सबूत नहीं मिला कि उसे जबरन सती किया गया हो।
मालूम हो कि दिवराला गांव के माल सिंह शेखावत के साथ रूप कँवर का विवाह 1987 में हुआ था। उनके पति माल सिंह की बीमारी से छह माह बाद ही मृत्यु हो गई थी। इसके बाद रूप कँवर ने मात्र 18 साल की उम्र में अपने पति की चिता के साथ जलकर स्वयं को सती कर लिया था। यह घटना भारत में सती प्रथा की अंतिम ज्ञात घटना मानी जाती है।
इस प्रकरण के सार्वजनिक होने पर देशभर में आक्रोश फैल गया था, और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के निर्देश पर इस मामले की जांच की गई, जिसमें 45 लोगों को आरोपी बनाया गया था। देशभर में इस कृत्य की कड़ी आलोचना हुई थी, जिसके बाद सती प्रथा पर कड़े कानून बनाए गए। हालांकि, दिवराला के ग्रामीणों ने रूप कँवर को देवी का दर्जा दिया और उनके नाम से 'सती माता' का मंदिर बना दिया। वहीं, इस घटना को सामाजिक सुधारकों ने मजबूरन आत्मदाह का नाम दिया और सरकार पर सख्त कदम उठाने का दबाव डाला।
1987 में तत्कालीन राज्यपाल बसंत दादा पाटिल ने सती निरोधक अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके अंतर्गत किसी विधवा को सती होने के लिए मजबूर करने पर मौत या उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया। इसके अलावा, सती प्रथा का महिमामंडन करने पर सात साल की जेल और 30,000 रुपये का जुर्माना तय किया गया।
37 साल पुराने इस मामले में अदालत ने आठ आरोपियों को बरी कर दिया है, हालांकि राजस्थान के सामाजिक संगठनों ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए उच्च अदालत में अपील करने की मांग की है। संगठनों का मानना है कि रूप कँवर को अभी तक न्याय नहीं मिला है और आरोपियों का बरी होना सती प्रथा की संस्कृति को पुनः प्रोत्साहित करने जैसा है।