प्रत्याशियों की हार जीत तय करेगी नेताओं का राजनीतिक भविष्य

पार्टी प्रत्याशी से ज्यादा नेताओं की साख दांव पर

chunav

 

प्रत्याशियों की हार जीत तय करेगी नेताओं का राजनीतिक भविष्य

 

राजस्थान में हो रहे उपचुनाव में राजनीतिक दिग्गजों की साख के साथ परिवारवाद भी कसौटी पर है। 7 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जातीय समीकरण के साथ-साथ सियासी समीकरण भी अलग है। सत्ताधारी पार्टी होने के नाते भाजपा की तो प्रमुख रूप से साख दांव पर है, लेकिन कांग्रेस, आरएलपी और बाप के लिए भी अपनी जमीन बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है। कई सीट ऐसी है जहां पर सिर्फ नाम के लिए प्रत्याशी है। प्रत्याशियों से ज्यादा चिंता तो किसी और को ही सता रही है।  हार और जीत से भले ही प्रत्याशियों को फर्क पड़े या ना पड़े लेकिन प्रत्याशियों की हार और जीत कई नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय करने वाली है। 

कनिका बेनीवाल की जीत पर निर्भर है आरएलपी का भविष्य 
सबसे पहले उस सीट की बात करते हैं जो सबसे ज्यादा चर्चाओं में बनी हुई हैं। खींवसर विधानसभा सीट पर हनुमान बेनीवाल ने अपनी पार्टी आरएलपी से अपनी पत्नी कनीका बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतारा है। इस सीट पर कनिका बेनीवाल की हार और जीत हनुमान बेनीवाल का राजनीतिक भविष्य टिका है। खींवसर से चुनाव जीतने वाले हनुमान बेनीवाल को भाजपा के रेवत राम डांगा कड़ी चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में हनुमान बेनीवाल की चिंता बढ़ती जा रही है। 

दोसा में सचिन पायलट और किरोड़ी लाल मीणा की साख दांव पर 
दोसा विधानसभा सीट पर भाजपा के दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा की साख दाव पर लगी हुई है। इस सीट पर भाजपा ने किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को उतारा है। वहीं कांग्रेस की ओर से डीसी बेरवा पर दाव खेला गया है। यह चुनाव डॉक्टर किरोडी लाल मीणा की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। लोकसभा चुनाव में डॉ. मीणा ने खूब मेहनत की लेकिन परिणाम पक्ष में नहीं आए। चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी रहो, भाजपा के प्रत्याशी जगमोहन मीणा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। प्रभारी मंत्री के तौर पर कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के लिए भी प्रतिष्ठा वाला चुनाव रहेगा। उधर कांग्रेस की तरफ से पूर्व में इस सीट से सांसद रह चुके पूर्व कांग्रेस प्रदेश पायलट, सांसद मुरारी लाल मीणा की खास दांव पर है।
झुंझुनूं विधानसभा सीट पर ओला परिवार की साख दांव पर लगी हुई है। इस सीट पर कांग्रेस ने अमीत ओला को प्रत्याशी बनाया है।  ऐसे में विधायक से सांसद बने बृजेन्द्र ओला की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी हुई है। इसके साथ जाट बहुल्य सीट के नाते कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा की साख दांव पर है। जबकि बीजेपी के लिहाज से प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी है.ओला के सामने भी दो मजबूत प्रत्याशी हैं। एक भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र भांबू है जो पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे थे। दूसरे पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढा हैं जो दो बार विधायक और दो बार मंत्री रह चुके हैं।
मीणा और गुर्जर बाहुल्य देवली-उनियारा विधानसभा सीट पर विधायक से सांसद बने हरीश मीणा की तो जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है ही, लेकिन इसके साथ टोंक से विधायक और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की प्रतिष्ठा का यह चुनाव होगा।अब केसी मीणा की हार जीत हरीश मीणा का कद तय करेगी उनके सामने भाजपा से राजेंद्र गुर्जर हैं जो पूर्व विधायक हैं। उधर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नरेश मीणा भी चुनौती दे रहे हैं।
आदिवासी बाहुल्य चौरासी विधानसभा सीट पर वैसे तो BAP भारत आदिवासी पार्टी के विधायक से सांसद बने राजकुमार रोत के सामने अपने गढ़ को बचाना एक चुनौती है,रोत ने अपने पसंदीदा प्रत्याशी अनिल कटारा को प्रत्याशी बनाया है। अनिल कटारा की हार जीत से राजकुमार रोत का राजनैतिक कद तय होगा। पिछले दो चुनावों में रोत ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और आदिवसी नेता बाबूलाल खराड़ी, पूर्व मंत्री कनकमल कटारा, सुशील कटारा के साथ कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए आवासी नेता और पूर्व मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय की साख भी दांव पर है।