जल्द खत्म होगा मौजूदा टोल सिस्टम, नितिन गडकरी ने बनाया मास्टरप्लान

टोल के लिए रुकना होगा बंद, अपने आप अकाउंट से कटेगा पैसा

जीएनएसएस तकनीक आधारित होंगे टोल

टोल प्लाज़ा पर लगने वाली लंबी कतारों से जल्द ही निजात मिलने वाली है। आज शुक्रवार (26 जुलाई) को केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बताया की अब जल्द ही देश में मौजूदा टोल सिस्टम को खत्म कर दिया जाएगा। 
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक विडिओ साझा करते हुए उन्होंने बताया की अब जल्द ही देश के पुराने टोल सिस्टम को अधिक आधुनिक और प्रभावी सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन प्रणाली से बदला जाएगा। इस नए सिस्टम की मदद से देश का टोल कलेक्शन बढ़ेगा और टोल प्लाज़ा पर लगने वाली लंबी कतारों से भी आजादी मिलेगी। अभी इस सिस्टम को देश के कुछ चुनिंदा टोल प्लाज़ा पर ही लगाया जाएगा। यह सिस्टम ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) की तकनीक पर काम करता है। इस सिस्टम के लागू होने के बाद शुल्क राशि आपकी तय दूरी के अनुसार सीधा आपके अकाउंट से काट ली जाएगी। यह नया तरीका लागू होने के बाद टोल पर लगने वाले औसत समय को कम करेगा और सफर को अधिक आसान बना देगा। 
समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत करते हुए गडकरी ने बताया की पहले मुंबई से पुणे जाने मे 9 घंटे  लगते थे और अब यह समय घटकर मात्र दो घंटे ही रह गया है। पिछले कुछ वर्षों मे भारत ने सड़क परिवहन की दिशा मे बहुत उत्कृष्ट कार्य किया है। 2017 में फास्टटैग को नई गाड़ियों पर अनिवार्य करने के बाद ही टोल प्लाज़ा पर लगने वाले समय को बहुत कम कर दिया गया था। इसके बाद टोल प्लाज़ा पर लगने वाला औसत समय 714 सेकंड से घटकर मात्र 47 सेकंड ही रह गया था। अब सॅटॅलाइट आधारित टोल कलेक्शन प्रणाली से इस समय को और कम करने की उम्मीद जताई जा  रही है। नितिन गडकरी ने इस तकनीक को देश में लागू करने की जानकारी पिछले वर्ष ही दे दी थी। 
पिछले माह 22 जुलाई को इस तकनीक पर परामर्श करने के लिए एक अन्तराष्ट्रिय वर्कशॉप भी आयोजित करी गई थी। कर्नाटक में NH-275 के बेंगलुरु-मैसूर खंड और हरियाणा में NH-709 के पानीपत-हिसार खंड पर इस तकनीक का सफल परीक्षण भी किया जा चुका है। 


भारत से पहले इन देशों में है यह तकनीक 


स्वीडन, रूस, जर्मनी, हंगरी, बेल्जियम जैसे कुछ यूरोपियन देश काफी पहले से इस सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं। स्वीडन इस तकनीक का उपयोग करने वाले सबसे शुरुआती देशों में से एक है। यहाँ यह तकनीक 2000 से उपयोग में ली जा रही है। इस तकनीक को लागू करने से इन देशों के राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई है। इस तकनीक की संचलान लागत काफी कम होती है। वहीं इसकी सहायता से रियल टाइम डाटा को सटीकता से इकट्ठा करना आसान हो जाता है।