यौन हिंसा के प्रतिदिन 12 से ज्यादे मामले आ रहे है सामने: गर्ग

राजस्थान में आए दिन बढ़ रहे है नाबालिग बच्चों से उत्पीडन के मामले, ऐसे मामलों में बढ़ोतरी होना चिंता का विषय: संगीता गर्ग 

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जयपुर: प्रदेश में नाबालिग बच्चों के उत्पीडन के मामलों को लेकर राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संगीता गर्ग ने बयान जारी करते हुए सरकार पर निशाना साधा है। गर्ग ने निशाना साधते हुए पिछले तीन महिनों के आंकड़ो को दर्शाया है। राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्या संगीता गर्ग का कहना है कि राजस्थान में आये दिन नाबालिग बच्चों से उत्पीडन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं । चाहे बलात्कार के हो,मार पीट के, छेड़खानी के या अन्य तरह के । हर तरह के मामलों में लगातार बढ़ोतरी होना सवालिया निशान छोडती है । हो भी क्यों नहीं जहां राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग जो बच्चों से संबंधित समस्याओं पर संज्ञान लेता है, मोनिटरिंग करता है, वह ही मृतप्राय: सा पड़ा है । सबसे दुखद बात यह है पिछले आठ नौ महीनों से आयोग में कोई अध्यक्ष नहीं है, संविधिक आयोग होने के नाते आयोग शक्ति निहित है, बावजूद इसके नियम विरूद्ध जाकर सरकार द्वारा एक अधिकारी को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया जाता है जबकि नियमानुसार किसी सदस्य को ही कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। उसके उपरांत विडंबना यह रही की उन्होंने भी आज दिन तक कोई एक भी मिटिंग आयोग कार्यालय में नहीं की है । जबकि आयोग में प्रति माह एक मिटिंग अनिवार्य है, एवं संवैधानिक रुप से 6 माह से अधिक अध्यक्ष का पद ख़ाली नहीं रह सकता । दोनों ही विषय में एक्ट की अवहेलना की गयी है । 
      
यौन हिंसा के प्रतिदिन 12 से ज्यादे मामले आ रहे है सामने: गर्ग
बाल आयोग में एक भी मीटिंग का नहीं होना इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार के द्वारा आयोग में कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति भी सुस्त रही,  उन्होंने बच्चों के मामले में कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई। रिपोर्ट बताती है की राजस्थान में नाबालिग बच्चों से यौन हिंसा के प्रतिदिन 12 से ज्यादे मामले सामने आ रहे है एवं पिछले तीन महीने में यौन उत्पीडन एवं छेड़छाड़ के 125 से ज़्यादा मामले सामने आये जिनमें से ज़्यादातर नाबालिग बच्चों के मामले है । सदस्य होने के नाते मैनें राज्यपाल , महिला एवं बाल विकास मंत्री, मुख्य सचिव, शासन सचिव बाल अधिकारिता विभाग , ऐजी को व्यक्तिगत रुप से स्वयं उपस्थित होकर पत्र दिये एवं मुख्यमंत्री को मेल के माध्यम से तथा हर सक्षम स्तर तक बाल आयोग से सम्बंधित समस्याओं के बारे में अवगत कराया, पर अफ़सोस आठ से नौ माह बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस बने हुए हैं । बच्चें भगवान का रुप होते है, आये दिन उनके साथ अत्याचार हो रहे है, सरकार का बच्चों के प्रति लापरवाह होना गंभीर है। बच्चों के प्रति संवेदनशीलता बरतते हुए सरकार को जल्द से जल्द उचित निर्णय करना चाहिए। 
रिपोर्ट.... संदीप अग्रवाल