राजस्थान में अब विश्वविद्यालयों के कुलपति कुलगुरु कहलांएगे। बीजेपी के नेताओं ने कुलपति के नाम में पति होने को गलत बताते हुए उसकी जगह गुरु करने की मांग की थी। उसके बाद सरकार ने राजस्थान विधानसभा में नाम बदलने के लिए बिल पेश किया था जिसे विधानसभा में पास किया गया है। हालांकि इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर नोंकझोंक भी हुई। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी और कांग्रेस विधायक हरी मोहन शर्मा के बीच बहस भी हो गई। हरिमोहन शर्मा ने कहा कि सरकार ने नाम बदलने के अलावा कोई काम नहीं किया है। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने हरि मोहन शर्मा को विश्वविद्यालय और शिक्षा पर बोलने के लिए कहा इसके बाद दोनों के बीच तकरार हो गई। डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कहा कि भारतीय समाज में विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण का कार्य गुरु करता है। कुलपति शब्द स्वामित्व को दर्शाता है, जबकि गुरु शब्द के साथ विद्वता और आत्मीयता भी जुड़ी है। प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लगातार महत्वपूर्ण फैसले ले रही है। उन्होंने कहा कि वंचित वर्गों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध करवाना राज्य सरकार का लक्ष्य है।
सदन में स्पीकर और कांग्रेस विधायक में हुई तीखी बहस
उच्च शिक्षा मंत्री डॉ प्रेमचंद बैरवा ने राजस्थान के विश्वविद्यालय की विधियां विधेयक 2025 सदन में पेश किया। इस पर चर्चा के दौरान कांग्रेस विधायक हरिमोहन शर्मा ने कहा कि सरकार ने नाम पर नाम परिवर्तन करने के मामले में रिकॉर्ड तक तोड़ दिया है। हरिमोहन शर्मा ने कहा कि नाम बदलने से ही अगर योजनाओं को संबल मिल जाए तो समझ में आता। इसके बाद में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने ठोकते हुए कहा कि राजनीतिक भाषण के बजाए आप बिल और शिक्षा पर अपनी बात रखें। इसके बाद संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी सीट से खड़े होकर अपनी बात रखने लगे। हरिमोहन शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय के कुलपति का पदनाम कुलगुरु करने से क्या हो जाएगा। आप कुलगुरु और कुलपति में अंतर बता दीजिए। नाम बदलने की क्या आवश्यकता पड़ी। प्रदेश के 33 में से एक भी विश्वविद्यालय दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में नहीं है। सरकार विश्वविद्यालय को तो शीर्ष पर पहुंचा नहीं पा रही और अपनी मूल भावनाओं के अनुसार नाम बदल रही है। उन्होंने कहा, कुलगुरु पुरानी शिक्षा पद्धति में होते थे। आज कुलपति पूरे विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था देखते हैं।
लाउड स्पीकर की आवाज पर नियंत्रण करने की मांग उठी
प्रदेश में धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों की आवाज का मामला एक बार फिर से विधानसभा में उठा। दरअसल हाल ही में बालमुकुंद आचार्य ने लाउडस्पीकर की आवाज के मुद्दे को उठाया था। इसके बाद से यह मामला लगातार तूल पकड़ने लगा था। और अब धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण का मामला विधानसभा में उठाया गया। भीलवाड़ा विधायक अशोक कोठारी ने यह मामला उठाया और कहा कि तेज आवाज को नियंत्रित करना अति आवश्यक है। भारतीय संविधान के तहत हर नागरिक को शांतिपूर्ण वातावरण में मौलिक जीवन जीने का अधिकार है। विधायक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में ध्वनि प्रदूषण के मामले पर फैसले में हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि तेज आवाज में अपनी बात कहना भले ही अभी व्यक्ति की आजादी के अंतर्गत आता है, लेकिन यह किसी के जीवन के अधिकार के उपर नहीं हो सकता।