काँग्रेस का ये कदम हरियाणा में छुड़ा सकता है भाजपा के पसीने, पढ़ें पूरी खबर
Saturday, 03 Aug 2024 00:00 am

Golden Hind News

आने वाले कुछ समय में द्देश के तीन बड़े राज्य -झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के राजनीतिक दंगल में सजने वाले हैं। इनमें से महाराष्ट्र और झारखंड के राजनीतिक समीकरणों से वहाँ की जनता की सरकारी नब्ज़ समझना मुश्किल है मगर हरियाणा में काँग्रेस अभी तक अपने विपक्षी दलों से कुछ कदम आगे ही नजर आ रही है। राजनीतिक पंडितों का तो ये तक कहना है की इन चुनावों मे काँग्रेस हरियाणा की कुर्सी को बिना किसी विपक्षी दलों की मदद के अकेले ही जीत जाएगी। 

हरियाणा : महाराष्ट्र में शिंदे और उद्धव गुट की उथल पुथल सभी विशेषज्ञों के गले की हड्डी बनी हुई है। झारखंड में बीजेपी बैकफुट पर नजर आ रही है। मगर यहाँ से भी उनकी वापसी के कयास लगाए जा सकते हैं। मगर हरियाणा की राजनीति में काँग्रेस के पास एक दलित उम्मीदवार का होना राज्य में उनकी सियासी जड़ों को मजबूत कर रहा है। वर्तमान में अगर हरियाणा के राजनीतिक पटल पर देखें तो काँग्रेस पार्टी पूरी तरह से बिखरी हुई नजर आती है। ना कहीं कोई संवाद नजर आता है और ना ही कोई एकजुटता। जहां राज्य में एक ओर काँग्रेस का सबसे मजबूत भूपेन्द्र हूडा गुट रैलियों में पूर्व सीएम के बेटे सांसद दीपेन्द्र हूडा की ब्रांडिंग सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में कर रहा है। तो वहीं दूसरी ओर इस सब से उलट सांसद शैलजा कुमारी गुट भी शैलजा को ही भावी मुख्यमंत्री मान बैठा है। अभी तक इस गुटबाज़ी पर कॉंग्रेसी हाइकमान भी चुप्पी साधे नजर बनाए हुए है।  
मगर इस दौड़ में कुमारी शैलजा गुट के पास बढ़त है- 

1) काँग्रेस का दलित राजनीतिक मास्टरप्लान- बीते काफी समय से राहुल गांधी लगातार ही दलित मुद्दे को लेकर बीजेपी पर हमलावर रहे हैं। चाहे बजट सेरमनी हो या श्री राम मंदिर जैसे अन्य मुद्दे पिछले कुछ महीनों से काँग्रेस दलित हमदर्दी के सहारे बीजेपी पर हमलावर होने का कोई मौका अपने हाथ से नहीं जाने दे रही है। लेकिन इसी सब के बीच राहुल गांधी पर दलितों का समर्थन केवल कागज पर ही करने का आरोप भी लगता रहता है। इसी कारण से माना जा रहा है की राज्य में सीएम पद के लिए प्रबल दलित उम्मीदवार होने का मौका काँग्रेस जरूर अपने पक्ष में भुनाएगी। काँग्रेस ने अपनी यही चाल पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी और कर्नाटक में सिद्धारमैया को सीएम पद के लिए चुन कर भी चली थी। इसी कतार में काँग्रेस भविष्य में हरियाणा से कुमारी शैलजा का नाम भी शामिल कर सकती है। 

2) भाजपा की दलित वर्ग पर कमजोर पकड़- भारतीय जनता पार्टी की पहचान एक लंबे अर्से से ब्राह्मण दल के रूप में स्थापित हो चुकी है। इसी कारण ये माना जाता है कि धीरे धीरे दलित वोट बैंक भाजपा के हाथ से निकलता जा रहा है। काँग्रेस भाजपा की इसी कमजोरी पर लगातार वार करती है। बीते समय में दलित समुदाय से आने वाले  मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी अध्यक्ष चुनकर भी काँग्रेस दलित समुदाय को आकर्षित कर चुकी है। वहीं राज्य में हूडा गट के मजबूत होने के बाद भी शैलजा गुट की रैलियों पर कॉंग्रेसी हाइकमान की चुप्पी राज्य की राजनीति में किसी बड़े उलटफेर का संकेत दे रही है।  

3) लोकसभ चुनावों में कमजोर प्रदर्शन- इस बार के लुकसभा चुनावों में राज्य के अंदर भाजपा का प्रदर्शन गिरा है। इस चुनाव में हरियाणा की 10 सीटों में से भाजपा और काँग्रेस दोनों ने ही 5-5 सीटों पर जीत हासिल करी थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा को इस बार राज्य में 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। इसी के बाद से भाजपा राज्य में कमजोर नजर आ रही है। काँग्रेस राज्य में भाजपा की इस कमजोरी का फायदा उठाने की पूरी कोशिश कर सकती है।  

4) हरियाणा का प्रखर दलित वोट बैंक- हरियाणा के कुल मतों का एक बहुत बड़ा हिस्सा दलित समुदाय से आता है। राज्य में लगभग 19 फीसदी दलित वोट हैं। किसी भी पार्टी को राज्य में सरकार बनाने के लिए कुल 90 सीटों में से 46 सीटें अपने पाले में लानी हैं। कुछ समय पहले काँग्रेस ने हरियाणा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले उदयभान को चुनकर अपने इरादे साफ जता दिए थे। इसीलिए उम्मीद जताई जा रही है कि संविधान बचाओ जैसे नारे देने के बाद काँग्रेस कुमारी शैलजा के रूप में सीएम पद के लिए दलित उम्मीदवार का चयन कर के राज्य में भाजपा की कमर तोड़कर हरियाणा राजनीति पर स्वामित्व हासिल कर सकती है।