SMS अस्पताल में लपकों का आतंक जोरों पर, लुट रहे मरीज SMS Hospital में जमकर चल रहा है लूट का खेल, सस्ती दवा दिलाने के नाम पर लपके कूट रहे चांदी
Wednesday, 11 Dec 2024 00:00 am

Golden Hind News

प्रदेश के सबसे बड़े सवाई मानसिंह अस्पताल (Swaimansingh Hospital) में इन दिनों लपका गिरोह( lapka gang) का आतंक जोरों पर है। अस्पताल में आने वालों मरीज के परीजनों को अपने जाल में फंसाता है और अपने कमीशन वाली मेडिकल दुकान(medical shop) तक ले जाकर दवा दिलवाता हैं I लपकों को ना पुलिस का डर और ना ही अस्पातल प्रशासन का भय I

 

 

 SMS अस्पताल में लपकों का आतंक जोरों पर, लुट रहे मरीज

अस्पताल में दवा दुकानों के लपकों की कारगुजारी इतनी जड़ें जमा चुकी है कि हर साल लपके आस पास की दवा दुकानों को करीब 10 से 15 करोड़ से अधिक का दवा कारोबार दिला रहे हैं. करीब 10 से 12 ऐसी निजी दवा दुकानें आस पास बताई जा रही है, जिनके लपके एसएमएस अस्पताल के मुख्य पोर्च(Main pourch) बांगड़ परिसर(banger hall) के आस पास, धन्वन्तरि आउटडोर( Dhanvantri outdor) चरक भवन के आस पास लगातार सक्रिय रहते है. 

 

 

ओपीडी समय के दौरान करीब 15 से 20 लपके हमेशा सक्रिय रहते हैं

अस्पताल परिसर में ओपीडी(OPD) समय के दौरान करीब 15 से 20 और उसके बाद भी करीब 10 लपके हमेशा सक्रिय रहते हैं. जिन स्थानों पर लपके सक्रिय रहते हैं, उनके आस पास बमुश्किल 20 से 50 और 100 मीटर तक के दायरे में प्रशासनिक अधिकारी डॉक्टरों(Administrative Officiers Doctors) के कक्ष भी हैं। लेकिन कुछ एक मामलों को छोडक़र आज तक किसी भी प्रशासनिक अधिकारी डॉक्टर ने सक्रियता दिखा दवा लपकों को पुलिस के हवाले नहीं करवाया।

अस्पताल प्रशासन ने अस्पताल को जोन में बांटकर अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी डॉक्टरों का क्षेत्रवार कार्य विभाजन कर दिया था

अस्पताल प्रशासन ने अस्पताल को जोन (ZONE) में बांटकर अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी डॉक्टरों का क्षेत्रवार कार्य विभाजन कर दिया था. ये अधिकारी अस्पताल में मौजूद रहकर अपने क्षेत्र में भी घूमते हैं.जानकारी के अनुसार दवा दुकानों की ओर से लपकों को कमीशन(commision) के आधार पर नियुक्त किया जाता है. जो लपका, मरीज के परिजनों को जाल में फंसाकर दवा दुकान तक ले जाकर दवा दिलवाने में अधिक सफल होता है, उसका कमीशन उसके बिल के आधार पर बनता है. माना जा रहा है कि कुछ लपके रोजाना 5-7 हजार तक का कमीशन आस पास की दवा दुकानों से बनवा रहे हैं यानि इनकी मासिक अनुमानित आय एक लाख से डेढ़ लाख रुपए तक भी है जिसका बोझ सिर्फ और सिर्फ मरीज की जेब तक जा रहा है.

 

अस्पताल ने इस साल की शुरूआत में ही लपकों को रोकने की योजना बनाई थी 

अस्पताल ने इस साल की शुरूआत में ही लपकों को रोकने की योजना बनाई थी. इनडोर मरीजों के परिजनों के आस पास लपकों को नहीं आने देने के लिए लाइफ लाइन तक ऑनलाइन दवा पर्ची (Oniline medicine bill) पहुंचाने की योजना थी. इसे आईसीयू व अन्य विभाग में शुरू कर दिया गया है। अस्पताल ने इसके लिए एक हैल्पर और एक फार्मासिस्ट को छह-छह वार्ड दिए हुए है.ये दोनों कर्मचारी वार्ड या आईसीयू (ICU) से दवा पर्चियां एकत्रित कर काउंटर तक पहुंचाते हैं. निशुल्क दवा काउंटर से मरीज के परिजन को सीआर नंबर (CPR number) दिया जाता है. मरीज के परिजन को लाइफ लाइन काउंटर(Life Line Counter) पर जाकर सीधे सीआर नंबर देना होता है। इससे बीच में मिलने वाले लपकों तक दवा पर्ची नहीं पहुंच पाती लेकिन अस्पताल की यह योजना कम्प्यूटरों की कमी और नेटवर्क कनेक्टिविटी की कमी के कारण इन वार्डों और विभागों से आगे ही नहीं बढ़ पाई है।