भोपाल गैस त्रासदी को चार दसक हुए पूरे भोपाल से पूछिए कैसी होती है काली रात, काली रात ने भोपाल से अपनों को छीना 
Sunday, 01 Dec 2024 12:30 pm

Golden Hind News

भोपाल। काली रात क्या होती है अगर ये जानना है तो भोपाल वालों से पूछों जिन्होंने काली रात में अपनों खोया है। जिन परिवारों की रोशन जिंदगी में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। उस रात मौत तांडव कर रही थी और हर तरफ चीज पुकार सुनाई दे रही थी। उस दिन सिर्फ लोग ही नहीं मारे थे बल्कि इंसानियत भी मर गई थी। अपने आप को बचाने के लिए मां बच्चों को छोड़कर और बच्चे अपने मां-बाप को छोड़कर भाग रहे थे। ये रात थी 1984 में 2 दिसंबर और 3 दिसंबर की मध्यरात्रि की। भोपाल वालों के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी सबसे काली रात थी। इस घटना को 40 साल बीत गए हैं लेकिन इस घटना को याद कर आज भी लोग सहम उठते हैं। इस घटना के बारे में बात कर लोगों के आंसू निकल आते हैं।
सन 1984 देश के लिए सबसे मनहूस
सन 1984 देश के लिए सबसे मनहूस रहा। इसी साल अक्टूबर के आखिरी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। उसके अगले महीने नवंबर में हजारों सिखों को जिंदा जला दिया गया। और उसके बाद 2 दिसंबर की रात भोपाल में जहरीली गैस का रिसाव हुआ। इस जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इन तीनों ही घटनाओं में अलग-अलग कारण सामने आए। ‌ पहले धोखे की, दूसरी में क्रूरता की और तीसरी महिला प्रवाही की पराकाष्ठा देखने को मिली। 
प्रशासन की लापरवाही 
भोपाल में गैस त्रासदी हो सकती है इसको लेकर पत्रकार राजकुमार केसवानी ने घटना के करीब ढाई साल पहले ही शासन प्रशासन के साथ-साथ कंपनी को आगाह कर दिया था। केसवानी ने 26 सितंबर 1982 को एक खबर प्रकाशित की थी। इस खबर का टाइटल था बचाइए हुजूर इस शहर को बचाइए।  पत्रकार की केसवानी ने यूनियन कार्बाइड प्लांट में रखरखाव और सुरक्षा मानकों की अवहेलना के चलते एमआईसी लीक होने की आशंका जताई थी। लेकिन इस रिपोर्ट पर किसी ने भी गौर करना जरूरी नहीं समझा। इसके बाद केसवानी ने 2 और लेख लिखे। जिसका शीर्षक था ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल और ना समझोगे तो आखिर मिट ही जाओगे।
प्लांट से हुआ गैस का रिसाव 
2 दिसंबर 1984 की रात गैस का रिसाव शुरू हुआ। सरकारी आंकड़ों की माने तो भोपाल मरने वालों की संख्या 3787 थी जबकि सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर 15724 संख्या बताई गई। वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार मरने वालों की संख्या 33 हजार से ज्यादा थी। यह दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी। इस पूरे मामले में 11 अगस्त 2010 को उस वक्त की विपक्ष नेता सुषमा स्वराज ने भोपाल गैस कांड को लापरवाही की पराकाष्ठा बताया। 
मौत अचानक नहीं बरसी- सुषमा स्वराज
सुषमा स्वराज ने पूरे मामले को लेकर कहा की मौत अचानक नहीं बरसी थी। नहीं ऊपर से आकर टपक पड़ी थी। इस मौत में 3 साल तक दरवाजा खटखटाया था। 3 साल तक शासन प्रशासन को आगाह भी किया था। फैक्ट्री वालों को दस्तक देकर कहा था कि तुम्हारे द्वार पर ही खड़ी हूं। अगर मुझे लौटा सकते हो तो लौटा दो। अगर अंदर प्रवेश कर गई तो हजारों को लील जाऊंगी। मौत अपने आने का घंटे बाजा बजा कर शोर मचा रही थी। लेकिन अफसोस है कि यह आवाज बस्ती वालों ने, श्रमिक संगठनों ने और प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों ने सुनी। पत्रकारों ने सुनी और बार-बार सियासतदानों व फैक्टरी आला-अधिकारियों को सुनाने की कोशिश की, लेकिन मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रशासन ने पैसे के लालच में, राजनेताओं ने सत्ता के मद मौत की आवाज को अनसुना कर दिया। लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया।