कांग्रेस के लिए हार का सबब बनी एक दूसरे को निपटाने की जिद
राजस्थान में विधानसभा उपचुनावों के नतीजों के मायने जीत-हार के आगे भी हैं। कांग्रेस ने लोकसभा में 11 सीटें जीतकर जो एडवांटेज लिया था, उसे उपचुनाव में गंवा दिया। उपचुनावों के नतीजों का आकलन करें तो नतीजे बीजेपी की जीत कम और कांग्रेस की हार ज्यादा रहे। इसकी सबसे बड़ी वजह थी खेमाबंदी। हालांकि कांग्रेस ने उपचुनाव में मिली हार के कारणों की जांच शुरू कर दी है। इसके लिए कांग्रेस ने विधानसभा क्षेत्र में लगाए गए पर्यवेक्षक और प्रभारी से रिपोर्ट लेने की तैयारी शुरू करते हैं।
उपचुनाव में प्रचार के दौरान लगाए गए नेताओं में से अधिकांश नेताओं ने प्रचार के दौरान पार्टी की स्थिति बेहतर ही बताई थी। लेकिन परिणाम उसके बिल्कुल विपरीत सामने आए। पार्टी की ओर से कहां कमी रही इसकी तलाश की जा रही है। कांग्रेस पार्टी रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में पार्टी की जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थी लेकिन इस सीट पर भी कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी।
सबसे कमजोर सीट पर मिली कांग्रेस को जीत
सलूंबर में रघुवीर मीणा कांग्रेस को पूरी तरीके से लेकर डूब गए। झुंझुनू सीट की बात करें तो यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सहित कोई भी नेता प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया। वहीं अगर बात करें अलवर की तो नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली अलवर से बाहर ही नहीं निकल पाए। उपचुनाव के दौरान अशोक गहलोत और सचिन पायलट को महाराष्ट्र भेज दिया गया। सचिन पायलट ने प्रचार किया लेकिन सिर्फ दौसा और देवली उनियारा ही आकर चले गए थे। सांसद हरीश मीणा ने देवली ने प्रचार करना जरूरी भी नहीं समझा। भाजपा में चल रही भीतरघात का फायदा कांग्रेस को दौसा में मिला। और यही वजह रही की कांग्रेस ने दौसा सीट पर जीत हासिल की। और उपचुनाव में अपनी थोड़ी लाज बचा ली।
उपचुनाव में कांग्रेस हुई फ्लॉप साबित
कांग्रेस में एक दूसरे को निपटाने की लड़ाई और खेमाबंदी कांग्रेस पर ही भारी पड़ गई। कांग्रेस अपनी ही जीद में 4 सीटों पर अपनी जमानत जब्त करवा बैठी। वहीं खींवसर विधानसभा सीट पर कांग्रेस हनुमान बेनीवाल को निपटाने के चक्कर में खुद ही निपट गई। जो नागौर कांग्रेस का गढ़ रहा है कभी वहां कांग्रेस अपने ही प्रत्याशी की जमानत जब्त करा बैठी। कांग्रेस की रतन चौधरी यहां 5 हजार वोट ही हासिल कर पाई। ऐसे में हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस के बीच चल रही लड़ाई का फायदा भाजपा ने उठाया।
रामगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस नेता भंवर जितेंद्र और जुबेर परिवार की अदावत किसी से छुपी नहीं है। इस सीट पर जुबेर खान के निधन के बाद आर्यन जुबेर खान को मैदान में उतारा गया। इस सीट पर जो एससी वोट कांग्रेस का माना जाता है वहीं वोट भाजपा में शामिल हो गया।
दौसा सीट पर कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने को जरूर मिला लेकिन यहां भाजपा अपनी ही भीतरघात के कारण चुनाव हारी। भाजपा के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने इसे लेकर बयान भी दिया जहां बाबा ने कहा मुझे अपनों ने ही हरा दिया। दौसा चुनाव में मुरारी लाल मीणा चुनाव प्रचार के दौरान नजर नहीं आए।
अपनों के कारण हारी कांग्रेस
देवली उनियारा सीट की बात करें तो यहां कांग्रेस के नरेश मीणा ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और चुनाव में केसी मीणा को अकेला छोड़ दिया। जिसकी वजह से केसी मिणा अकेले ही चुनावी मैदान में प्रचार करते हुए नजर आए। जबकि भाजपा की ओर से इस चुनावी मैदान में पूरी मशीनरी झोंक दी गई। यही कारण रहा की जो सीट कांग्रेस के पास थी वो सीट कांग्रेस के हाथ से ही निकल गई। इस सीट पर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही।
सलूंबर में पू्र्व सांसद रघुवीर मीणा की बगावत ने कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा। इस सीट पर कांग्रेस के वोट बीएपी में शामिल हो गए। अगर चौरासी की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस ने पहले ही अपने हथियार डाल दिए थे। कांग्रेस चुनाव छोड़कर बैठ गई थी। 2023 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस यहां दूसरे नंबर पर रही थी। लेकिन इस बार पार्टी तीसरे नंबर पर चली गई।