कांग्रेस के गढ़ को ढहाने में भाजपा के लिए राजेंद्र गुढ़ा ने निभाई अहम भूमिका
झुंझुनूं विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 21 साल बाद भाजपा ने अपना परचम लहराया है। सत्ता पर सवार भाजपा के राजेन्द्र भाम्बू ने यहां इतिहास दोहराते हुए फिर कमल खिलाया है। उन्होंने 90,425 वोट लेकर कांग्रेस के अमित ओला को रेकॉर्ड 42,848 मतों से हरा दिया। झुंझुनूं के इतिहास में भाजपा की यह सबसे बड़ी जीत है। इसी के साथ ओला परिवार का राजनीतिक गढ़ ढह गया। इससे पहले यहां से वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सुमित्रा सिंह ने जीत दर्ज की थी। झुंझुनूं में भाजपा की यह तीसरी जीत है। इसमें दो उप चुनाव शामिल हैं।
कांग्रेस की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली झुंझुनू सीट पर भाजपा की अप्रत्याशित जीत से कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। गौरतलब है कि झुंझुनू उपचुनाव के त्रिकोणीय मुकाबले ने इसे रोचक बना दिया था। इसी के फलस्वरूप अब यहां जो चुनाव परिणाम आया है, वो भी बड़ा दिलचस्प है। यहां कांग्रेस से सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला मैदान में थे, जिन्होंने बड़ी हार के साथ अपने राजनीतिक जीवन का खाता खोला है।
भाजपा ने तोड़ी कांग्रेस के 21 साल पुरानी किले बंदी
भाजपा सिंबल से उप चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करा विधायक बने राजेन्द्र भाबूं को लगातार दो हार का सामना करना पड़ा था। अब राजेन्द्र भाबूं की जीत के बाद सियासी गलियारों में उनकी चर्चा आने वाले दिनों में भी बनी रहेगी। ओला परिवार की परंपरागत सीट पर दिग्गज किसान नेता शीशराम ओला के पोते और ओला परिवार की राजनैतिक विरासत को भविष्य में संभालने वाले अमित ओला पहला चुनाव बड़े अंतर से हारे गए है।
राजेंद्र गुड़ा के मैदान में आने से हारी कांग्रेस
त्रिकोणीय मुकाबले के कारण शुरू से ही सियासी गलियारों में चर्चा थी कि अगर भाजपा प्रत्याशी बड़ी जीत हासिल करते हैं तो इसमें अप्रत्यक्ष रूप से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे लाल डायरी वाले पूर्व मंत्री राजेन्द्रसिंह गुढ़ा का बड़ा योगदान रहेगा और यही हुआ भी गुढ़ा ने कांग्रेस प्रत्याशी अमित ओला के परंपरागत अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगाई, जिससे भाजपा को इसका सीधा फायदा मिला।
इस सीट पर कांग्रेस की हार के कई कारण रहे। चुनाव में ओला परिवार के प्रति परंपरागत वोटर की नाराजगी देखने को मिली। इसके साथ ही टिकट नहीं मिलने के कारण अल्पसंख्यक समुदाय भी नाराज दिखा। पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस का एक भी बड़ा नेता जहां प्रचार करने के लिए नहीं पहुंचा। अशोक गहलोत, गोविंद सिंह डोटासरा और सचिन पायलट भी चुनाव प्रचार से नदारत दिखे। इस बार कांग्रेस को बगावत का भी सामना करना पड़ा। जिसे समय रहते कांग्रेस नेताओं ने दुर नहीं किया।
ओला परिवार अपने गढ़ को बचाने में हुआ नाकामयाब
कांग्रेस की हार का बड़े कारणों में गहलोत सरकार से बर्खास्त मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा का झुंझुनू से निर्दलीय चुनाव लड़ना भी रहा। वे कांग्रेस के परंपरागत अल्पसंख्यक वोटों को कुछ हद तक अपनी ओर खींचने में कामयाब रहे, जबकि भाजपा वोट बैंक अपने जगह से नहीं खिसका।
भाजपा काफी सालों बाद पहली बार बिना बागी के चुनाव लड़ी। बागी हुए बबूल चौधरी को तत्काल मान लिया। सीएम भजनलाल ने मंत्रियों सहित भाजपा नेताओं की फौज झुंझुनूं में उतार कर रणनीति से चुनाव लड़ा। प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत एवं सुमित गोदारा, चुनावी संयोजक डा. दशरथसिंह शेखावत की रणनीति काम आई।