नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों द्वारा बिना नोटिस दिए, घरों को तोड़े जाने की घटनाओं पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि कोई भी अधिकारी कानून का पालन किए बिना किसी की संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के अपराध की सजा उसके परिवार को नहीं दी जा सकती, और अगर ऐसा किया गया तो अधिकारियों को इसका खामियाजा भुगतना होगा।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, "हर नागरिक को अपने घर का अधिकार है, और इसे बिना कारण उजाड़ना असंवैधानिक है।" उन्होंने कहा कि बुलडोजर के गलत उपयोग पर संबंधित अधिकारियों से पूरी राशि की वसूली की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश -
• ध्वस्तीकरण दिशा-निर्देश के लिए 15 दिन पहले कारण बताओ नोटिस जारी हो। लिखित नोटिस दिए बगैर किसी की संपत्ति नहीं सही जा सकती।
• नोटिस की प्रति डाक से मालिक को भेजी जाए। दूसरी संपत्ति के बाहर चिपकाए जाए। • नगर निगम या स्थानीय निकाय को तीन महीने में डिजिटल पोर्टल बनाना होगा। इसमें नोटिस चिपकने, जवाब और आदेश से जुड़ी हर जानकारी अपलोड की जाएगी। संपत्ति ढहाने का आदेश पोर्टल पर डालना अनिवार्य है।
• संबंधित प्राधिकारी मालिक को पक्ष रखने का अवसर दें। विवरण सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो।
• संपत्ति के मालिक को आदेश पारित होने के 15 दिन के भीतर अवैध ढांचा खुद हटाने या गिराने का मौका मिलना चाहिए, लेकिन यह उसी हालत में हो, जब आदेश पर रोक न लगी हो।
• अनधिकृत निर्माण ढहाने की वीडियोग्राफी करवाई जाए। रिपोर्ट निकाय पोर्टल पर डाले।
• कोई अधिकारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करे तो अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू हो। • अफसरों को बताएं कि वे गलत तरीके से बुलडोजर एक्शन में लिप्त मिले तो ध्वस्त संपत्ति का दोबारा निर्माण उन्हें करवाना होगा। क्षतिपूर्ति के अलावा उन्हें व्यक्तिगत हर्जाना देना होगा।
• अवैध निर्माण गिराने में पक्षपात नहीं होना चाहिए। एक्शन का आधार किसी आरोपी का बैकग्राउंड या उसका समुदाय नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राज्य सरकारों को स्पष्ट संदेश देता है कि बुलडोजर का इस्तेमाल केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही किया जाए और किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन न हो। ऐसी तमाम खबरों को पढ़ने के लिए बने रहिए गोल्डन हिन्द न्यूज़ के साथ।
(रिपोर्ट : पवन गौड़)