भाजपा हर बार बदलती है प्रत्याशी तो कांग्रेस परिवारवाद तक सीमित  भाजपा झुंझुनूं सीट पर हर बार बदलती है प्रत्याशी 
Thursday, 24 Oct 2024 13:30 pm

Golden Hind News


भाजपा हर बार बदलती है प्रत्याशी तो कांग्रेस परिवारवाद तक सीमित 

 

 

एंकर- राजस्थान की राजनीति में सियासी पारा उबाल मारने लगा है। राजस्थान विधानसभा उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टीयों ने मैदान में ताल ठोक दी है। 
प्रदेश की सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं। इन 7 सीटों में देवली-उनियारा, सलूंबर, रामगढ़, दौसा, चौरासी, खींवसर और झुंझुनू विधानसभा सीट शामिल है। सभी विधानसभा सीटों के सियासी मिजाज को देखें तो इनमें से झुंझुनू एक ऐसी विधानसभा सीट है, जहां पर बीजेपी को हर बार अपना प्रत्याशी बदलना पड़ता है

ओला परिवार का दबदबा कांग्रेस में बरकरार 
 फिर वह विधानसभा के चुनाव रहे हो या लोकसभा के। हालांकि, भाजपा को अपने इस फार्मूले में ज्यादातर उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा है।
लेकिन अगर कांग्रेस की बात करे तो कांग्रेस झुंझुनू में एक ही परिवार के बदौलत राजनीति कर रही है। झुंझुनूं उप चुनाव में झुंझुूनूं से निवर्तमान विधायक एवं मौजूदा कांग्रेसी सांसद बृजेन्द्रसिंह के पुत्र अमित ओला को ही कांग्रेस का टिकट देकर कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में मैदान में उतारा है। अमित ओला के बारे में पिछले कई दिनों से अटकले लगाई जा रही थी कि कांग्रेस के पास अन्य कोई विकल्प नहीं है कि ओला परिवार के अलावा दूसरे को टिकट दे सकें। इसलिए टिकट अमित ओला या ओला परिवार में से ही कांग्रेस प्रत्याशी बनाएगी।

भाजपा हर बार बदलती है समीकरण 
झुंझुनू सीट की अगर बात करें तो यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी को अब तक केवल दो बार ही जीत हासिल हुई है। इस सीट पर इससे पहले 1996 में उपचुनाव हुआ था। इस उपचुनाव में जीत भाजपा की झोली में गिरी थी। इस दौरान भाजपा ने मूल सिंह शेखावत पर अपना दांव खेला था जबकि कांग्रेस की ओर से मैदान में बृजेंद्र ओला मैदान थे। इस चुनाव में बृजेंद्र ओला को हार का सामना करना पड़ा था। झुंझुनूं में लगातार यह तीसरा अवसर है जब विधायक ने सांसद का चुनाव जीता है। 2014 के बाद करें तो इस सीट पर भाजपा की संतोष अहलावत ने कमल खिलाया था। संतोष अहलावत का मुकाबला कांग्रेस की राजबाला ओला से था। इस दौरान अहलावत के चुनाव जीतने से सूरजगढ़ का सीट पर उपचुनाव हुए थे। 2019 में भाजपा के नरेन्द्र कुमार ने कांग्रेस के श्रवण कुमार को हराकर लोकसभा चुनाव जीता. इससे मंडावा में उपचुनाव हुए। यहां कांग्रेस की रीटा चौधरी ने भाजपा प्रत्याशी सुशीला सीगड़ा को हराया। झुंझुनू सीट पर पहले जब उप चुनाव हुआ था, तब शीशराम ओला के पहली बार सांसद बनने पर हुआ था। अब शीशराम के बेटे बृजेन्द्र ओला के सांसद बनने के कारण उपचुनाव होंगे।
झुंझुनूं विधानसभा सीट उन सीटों में से एक सीट है जहां भाजपा ने हर बार अपना प्रत्याशी बदला है फिर लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव। वहीं कांग्रेस ने हर बार एक ही परिवार पर भरोसा जताया है। बीजेपी ने 1980 से लेकर अब तक बीजेपी ने अलग अलग कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने का अवसर दिया,इसके विपरीत कांग्रेस ने एक को टिकट दिया, ओला परिवार इस बार 19 वां चुनाव लड़ेगा। इस सीट पर शीश राम ओला पांच बार सांसद रहे और चार बार विधायक रहे हैं। बृजेंद्र ओला ने यहां से 7 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा एक बार सांसद बने हैं।
1980 में बीजेपी ने सुमित्रा सिंह को समर्थन दिया था। वहीं कांग्रेस की और शीशराम ओला मैदान में थे। 1985 में भाजपा ने चुनाव नहीं लड़ा और निर्दलीय प्रत्याशी नरोत्तम जोशी को समर्थन दिया। वहीं कांग्रेस ने फिर से शीशराम ओला पर भरोसा जताया। 1990 में बीजेपी ने जनता दल के साथ समझौते में मोहम्मद माहिर आजाद को समर्थन दिया। कांग्रेस ने फिर शीशराम ओला को मैदान में उतारा। इस चुनाव में शीशराम ओला को हार का सामना करना पड़ा। 
1993 में भाजपा ने पहली बार अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा और सांवरलाल वर्मा पर दांव खेला। इस चुनाव में शीशराम ओला ने जीत हासिल की। 1996 में शीशराम ओला सांसद बन गए जिसकी वजह से इस सीट पर उपचुनाव हुआ। बीजेपी ने डॉ मूल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने ओला परिवार से हटकर सुमित्रा सिंह को मैदान में उतारा. वहीं, शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र ओला ने तिवाड़ी कांग्रेस से चुनाव में ताल ठोकी. त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी के प्रत्याशी डॉक्टर पेशे से आने वाले मूल सिंह को जनता का समर्थन मिला और जीते।
1998 में बिजेपी के गुल मोहम्मद मैदान में उतरे इस कांग्रेस ने बृजेंद्र ओला पर भरोसा जताया। वहीं कांग्रेस से नाराज़ हुई सुमित्रा सिंह ने निर्दलीय ताल ठोंकी ओर जीत हासिल की। 2003 में सुमित्रा सिंह बीजेपी में शामिल हो गई और बीजेपी की ओर से मैदान में उतरी। इस चुनाव में बृजेंद्र ओला को हार का सामना करना पड़ा। 2008 में आखिरकार बृजेंद्र ओला को तीन बार मिली हार के बाद जीत का स्वाद चखने को मिला। इस दौरान उन्होंने डॉक्टर मूल सिंह को हराया। 

भाजपा ने फिर खेला नया दांव 
2013 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजीव सिंह शेखावत को टिकट दिया तो कांग्रेस ने फिर बृजेन्द्र ओला को मैदान में उतारा दिया। इस चुनाव में भी बृजेन्द्र ओला जीत गए। 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राजेंद्र भामू को और कांग्रेस ने बृजेन्द्र ओला को मैदान में उतारा, जिसमें ओला की जीत हुई। 2023 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर प्रत्याशी बदला और बबलू चौधरी को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस से बृजेन्द्र ओला ओला मैदान में रहे।‌ जिसमें ओला की जीत हुई। 2024 के उपचुनाव में बीजेपी ने फिर प्रत्याशी बदला और राजेंद्र भामू को चुनावी मैदान में उतारा है।