Edited by: Kritika
इजरायल और फ़लस्तीनियों के बीच चल रहे संघर्ष में रूस और चीन की मध्यस्थता कई कारणों से महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में, दोनों देशों ने इस क्षेत्र में अपनी भूमिकाओं को बढ़ाया है, और यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो उनकी मध्यस्थता को समझने में मदद कर सकते हैं:
वैश्विक प्रभाव: रूस और चीन, अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिकूल एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में उभरने का प्रयास कर रहे हैं। दोनों देश इस संघर्ष में अपनी मध्यस्थता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे उन्हें एक नई पहचान और वैधता प्राप्त होती है, जिससे वे वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकते हैं।
विरोधी नीतियां: अमेरिका द्वारा समर्थित नीतियों के खिलाफ खड़े होने के लिए रूस और चीन ने फ़लस्तीनियों का समर्थन किया है। अमेरिका हमास को आतंकवादी संगठन मानता है, जबकि चीन और रूस की दृष्टि अलग है। उनका मानना है कि संघर्ष का समाधान बातचीत और संवाद के माध्यम से ही संभव है।
क्षेत्रीय संबंध: ईरान, सीरिया, और तुर्की जैसे देशों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध भी उनके मध्यस्थता के प्रयासों को मजबूत करते हैं। इन देशों के साथ उनके संबंध उन्हें इस क्षेत्र में एक प्रभावशाली भूमिका निभाने में मदद करते हैं।
सामाजिक-आर्थिक विकास: चीन का फ़लस्तीन के प्रति समर्थन केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि यह आर्थिक सहयोग के लिए भी है। हाल ही में, फ़लस्तीनी नेताओं ने बीजिंग में एक अस्थायी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो ग़ज़ा में एक अंतरिम सरकार के गठन की बात करता है। इससे चीन को क्षेत्र में निवेश करने और अपने आर्थिक हितों को बढ़ाने का अवसर मिलता है।
अतीत का प्रभाव: माओ त्से तुंग के समय से, चीन ने फ़लस्तीन के संघर्ष को पश्चिमी साम्राज्यवाद के खिलाफ एक लड़ाई के रूप में देखा है। यह नैरेटिव अब भी जारी है, और चीन फ़लस्तीन के समर्थन में अपने अतीत के अनुभवों को जोड़ता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि चीन और रूस की मध्यस्थता का परिणाम हासिल करना मुश्किल है। उनकी दीर्घकालिक रणनीतियों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उनके लक्ष्यों को देखते हुए, यह स्पष्ट नहीं है कि वे इस क्षेत्र में स्थायी शांति की दिशा में कितनी प्रगति कर सकेंगे।