जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य की मौजूदा भजनलाल सरकार को महिला शिक्षकों के प्रमोशन को लेकर सख्त फटकार लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि महिला शिक्षकों को पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता है, चाहे राज्य में बालिका विद्यालयों की संख्या कम ही क्यों न हो।
कोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि ग्रेड-2 शिक्षक के पद पर पदोन्नति के लिए शिक्षकों की वरिष्ठता सूची में लिंग के आधार पर भेदभाव करना अस्वीकार्य है। जस्टिस अनूप कुमार ढांड की बेंच ने आदेश दिया कि 2008-09 और 2009-10 के ग्रेड-2 शिक्षकों की रिक्तियों के विरुद्ध की गई पदोन्नति में याचिकाकर्ताओं को न केवल शामिल किया जाए, बल्कि 1998 तक नियुक्त अन्य महिला शिक्षकों को भी इसका लाभ दिया जाए। इसके लिए राज्य सरकार को तीन महीने का समय दिया गया है।
कोर्ट ने सरकार के दोहरे मापदंड पर भी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक ओर सरकार "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का नारा देती है, वहीं दूसरी ओर महिला शिक्षकों को पदोन्नति देने से इनकार कर रही है, यह बताते हुए कि राज्य में लड़कों के स्कूलों की संख्या अधिक है।
याचिका में अधिवक्ता एचआर कुमावत ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने 2008-09 और 2009-10 की द्वितीय श्रेणी शिक्षकों की रिक्तियों के लिए वरिष्ठता सूची तैयार की थी, जिसमें 1998 तक के ग्रेड-III पुरुष शिक्षकों को शामिल किया गया। इसके विपरीत, महिला शिक्षकों के लिए केवल 1986 तक नियुक्त लोगों को ही पदोन्नति के लिए विचार किया गया।
इस निर्णय ने न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि लिंग के आधार पर भेदभाव को भारतीय संविधान के तहत सहन नहीं किया जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो महिला शिक्षकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ता है।
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