अमेरिका में क्वाड समिट खत्म होने के बाद क्वाड सदस्य चारों देश भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने साथ मिलकर क्वाड-एट-सी शिप ऑब्जर्वर मिशन शुरू करने की घोषणा की है। इसी के साथ दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहे चीन के लिए भी मुश्किलें बढ़ेंगी।
अमेरिका : अमेरिका के डेलावेयर में क्वाड समिट खत्म हो चुकी है। समिट के बाद चारों देशों के जारी साझा बयान में दक्षिण चीन सागर की मौजूद स्थिति पर फिक्र जताई गई। क्वाड नेताओं ने कहा है कि 2025 में चारों देश मिलकर संयुक्त तट रक्षक मिशन बनाएंगे। इसी के साथ इंडो-पेसिफिक में चारों देशों के बीच समुद्री सहयोग बढ़ाया जाएगा।
क्वाड समिट के बाद जारी साझा बयान में कहा गया है कि यूएस कोस्ट गार्ड, जापान कोस्ट गार्ड, ऑस्ट्रेलियाई सीमा बल और भारतीय तट रक्षक बल मिलकर समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से 2025 में पहली बार क्वाड-एट-सी शिप ऑब्जर्वर मिशन शुरू करने जा रहे हैं। क्वाड नेताओं का यह बयान साफ संदेश है कि कोई भी सदस्य देश समुद्री ताकतों को बढ़ाने की चीन की नापाक कोशिशों का समर्थन नहीं करेगा। क्वाड नेताओं से साफ किया है कि कोई भी सदस्य देश किसी देश के खुली तौर पर खिलाफ नहीं है और यह कदम केवल आपसी सुरक्षा सहयोग के उद्देश्य से लिया गया है।
समुद्री विवाद शांति के साथ हल हों : क्वाड बयान
'क्वाड समिट के बाद जारी साझा बयान में कहा गया कि, " क्वाड खतरनाक युद्धाभ्यास के बढ़ते उपयोग सहित तट रक्षक और समुद्री मिलिशिया जहाजों के खतरनाक उपयोग की निंदा करते हैं। हमारा मत है कि समुद्री विवादों को शांतिपूर्वक और अंतरराष्ट्रीय कानून (यूएनसीएलओएस) के अनुसार हल किया जाना चाहिए। दक्षिण चीन सागर पर 2016 का मध्यस्थता एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और पार्टियों के बीच विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने का आधार है।" पहले भी कई बार चीन और क्वाड समुद्री विवादों पर एक दूसरे के सामने खड़े नजर आए हैं। चीन का मानना है कि क्वाड समूह उसके बढ़ते प्रभाव क्षेत्र को बांधने की एक कोशिश है। इसी कारण से चीन कई बार क्वाड पर नाराजगी जता चुका है।
ये कदम आक्रामकता नहीं सकरात्मकता : अमेरिका
चारों देशों के साझा बयान के बाद अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुविलन ने कहा कि, "एक साथ तट रक्षक मिशन करना या दक्षिण पूर्व एशिया के लिए एक साथ साइबर प्रशिक्षण करना या समुद्री डोमेन जागरूकता के संबंध में कदम उठाना कोई आक्रामकता नहीं है। ये किसी भी प्रकार की आक्रामकता का संकेत नहीं है। ये मौलिक रूप से रचनात्मक और सकारात्मक कदम हैं।" गौरतलब है कि कोई भी देश सीधे तौर पर किसी देश के खिलाफ नहीं है। चारों देशों का मानना है कि यह अभियान वैश्विक शांति और सुरक्षा की दिशा में उठाया गया एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम है।
भारतीय विदेश सचिव ने नहीं दिया कोई सीधा जवाब
दक्षिण चीन सागर में चीन के दबदबे को चुनौती देते इस कदम पर भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने चीन से जुड़े सवाल पर कोई जवाब नहीं दिया है। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर मोदी और बाइडेन ने क्वाड शिखर सम्मेलन में कोई चर्चा की या नहीं इस विषय पर भी भारतीय विदेश सचिव कोई जवाब देने से बचते नजर आए। देखा जाए तो भारत अपनी विदेश नीतियों को साफ रखते हुए भी अपनी आंतरिक और सामरिक सुरक्षा से कोई खिलवाड़ नहीं होने देना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी के विषय पर उठाया गया कदम भी इसी बात का प्रमाण है।