बुल्डोज़र न्याय पर लगेगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए दिया आदेश
Tuesday, 17 Sep 2024 13:30 pm

Golden Hind News

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए एक सितंबर तक बुल्डोज़र न्याय पर रोक लगा दी है। कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई में जरूरी दिशा-निर्देश जारी करेगा। कोर्ट के इस फैसले को बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपना समर्थन दिया है। कोर्ट का यह आदेश सार्वजनिक या सरकारी संपत्तियों को प्रभावित करने वाले अवैध निर्माणों पर लागू नहीं होगा

दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर तक बुल्डोज़र एक्शन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने बुल्डोज़र न्याय को संविधान के खिलाफ बताते हुए गैरकानूननी ध्वस्तीकरण पर भी अपनी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा है कि, "अगली सुनवाई तक हमारे आदेश के बिना आपराधिक मामलों के आरोपियों पर कहीं भी ध्वस्तीकरण की कोई कार्यवाही नहीं की जाए।"
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की डबल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्तीकरण की कायवाही को संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ माना है। यह रोक एक सितंबर तक लगाई है। इसके बाद दोबारा सुनवाई करते हुए कोर्ट इस दिशा में अग्रिम सुनवाई करते हुए जरूरी दिशा-निर्देश देगा। इस मामले में जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उन्होंने कहा था कि कोर्ट में केस चलने के बाद भी प्रशासन संपत्तियों को ढहा रहा है। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ध्वस्तीकरण पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि बुल्डोज़र न्याय का महिममंडन हो। 

हम अवैध निर्माणों के बीच में नहीं आएंगे : सुप्रीम कोर्ट 


कोर्ट का यह आदेश केवल आरोपियों की निजी संपत्ति पर कार्यवाही करने से सरकार को रोकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि सरकारी जमीन पर कब्जे और अवैध निर्माण पर अभी भी कार्यवाही की जा सकती है। इस तरह के निर्माणों के खिलाफ नोटिस दिए जाने के बाद भी खाली ना करने की स्थिति में कार्यवाही की जा सकती है। सड़क, रेलवे लाइन, फूटपाथ, जलस्रोत पर बने अवैध ढांचों पर कार्यवाही करने ,एन कोर्ट का यह आदेश बाधक नहीं बनेगा। संबंधित अधिकारी अभी भी सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति को प्रभावित करने वाले निर्माणों के खिलाफ कार्यवाही कर सकते हैं। 

कोर्ट आदेश पर जताई आपत्ति 

सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के इस आदेश पर आपत्ति जताई है। तुषार ने कहा कि, "अधिकारियों के हाथ इस तरह से नहीं बांधे जा सकते हैं। किसी भी प्रभावित व्यक्ति ने कोई याचिका दायर नहीं की है।" उन्होंने याचिकाकर्ता को कोर्ट के समक्ष उदाहरण पेश करने को कहा जब इस तरह की कार्यवाही में कानून का पालन नहीं किया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि, "15 दिन में ऐसा क्या हो जाएगा। हम अवैध अतिक्रमण के बीच नहीं आ रहे हैं। लेकिन अधिकारी जज नहीं बन सकते हैं। हम अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आदेश दे रहे हैं।"

हम किसी धारणा से प्रभावित नहीं होते हैं : सुप्रीम कोर्ट 

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि सरकार बुल्डोज़र न्याय के बहाने से धर्म विशेष को निशाना बना रही है। । इस पर कोर्ट ने साफ किया है कि हम किसी सुनी सुनाई कहानी या धारणा से प्रभावित होकर निर्णय नहीं सुनाते हैं। गौरतलब है कि सरकार पर कई बार एक विशेष धार्मिक समुदाय से जुड़े लोगों को निशाना बनाने का आरोप लगता रहा है।  याचिककर्ता केस आरोप को तुषार मेहता ने भी सिरे से खारिज किया था। 

बेटा आरोपी तो पिता का घर गिराना गलत : सुप्रीम कोर्ट 

इससे पहले 2 सितंबर को इसी मामले पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी के आरोपी सिद्ध होने पर उसका घर कैसे गिराया जा सकता है? दोषी साबित होने पर भी बिना कानूनी प्रक्रिया के पालन बिना कार्यवाही करना गलत है। अगर किसी का बेटा आरोपी है तो पिता का घर गिराना गलत है। 
बता दें कि पिछले कुछ वर्षों मे अपराधियों पर लगाम कसने के लिए सरकार उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर न्याय का डंडा लगाती रही है। समय समय पर कार्यवाही के इस प्रारूप पर सवाल भी उठते रहे हैं। 

गुजरात के जावेद ने भी दायर की थी याचिका 

ये सारा मामला तब शुरू हुआ था जब गुजरात निवासी जावेद अली ने सरकार के बुल्डोज़र न्याय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। दरअसल परिवार के एक सदस्य के नाम एफआईआर दर्ज होने के बाद नगर निगम ने उनके घर को गिराने का नोटिस भेजा था। अपनी याचिका में कहा था कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियाँ बीते दो दशक से इस घर में रह रही हैं। इस कारण परिवार के एक सदस्य की गलती के कारण घर को ढहा देना न्यायोचित नहीं है। 

केंद्र आगे आकर जरूरी गाइड्लाइन बनाए : मायावती 

बसपा प्रमुख मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सहमति जताते हुए इसे एक बेहतर फैसला करार दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए उन्होंने लिखा कि,"सरकार अगर गाइडलाइन बनाती तो बुलडोजर एक्शन के मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल नहीं देनी पड़ती। कोर्ट को केंद्र सरकार की जिम्मेवारी को निभाना नहीं पड़ता। यह जरूरी मामला था।" उन्होंने सरकार को नसीहत देते हुए कहा है कि किसी भी मामले पर जनता सहमत नहीं होती है तो केंद्र को आगे आकर उस विषय पर पूरे देश के लिए एक समान गाइडलाइन बनानी चाहिए।