नीतीश सरकार की सुप्रीम हार, अब सिर्फ केंद्र का सहारा

आरक्षण प्रस्ताव पारित करने के लिए अब क्या करेंगे नीतीश कुमार

छपिले वर्ष बिहार में नीतीश कुमार के लाए हुआ नए आरक्षण प्रस्ताव पर हाई कोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगा दी है। इस बार केंद्र में नीतीश किंगमकेर की भूमिका में सामने आए  हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या उनकी ये पदवी केंद्र में इस आरक्षण प्रस्ताव के पारित होने में सहायक रहेगी।

बिहार : बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा झटका दिया है। बीते वर्ष बिहार सरकार के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थानों में  65 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले पर 20 जून को पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसी के कुछ समय बाद बिहार सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाई कोर्ट के इस निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। 

दरअसल पिछले वर्ष 21 नवंबर को बिहार सरकार ने एक गजट  प्रकाशित गया जिसमें बताया गया की अब से बिहार में एससी, एसटी एवं ओबीसी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थानों में 65 प्रतिशत आरक्षण आरक्षित किया जाएगा। इसी के साथ इस गजट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को भी 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान था। इस प्रावधान के लागू होने के बाद भी शिक्षण संस्थानों एवं सरकारी नौकरियों मे कुल 75 प्रतिशत आरक्षण हो गया था। लेकिन कुछ समय पहले 20 जून को पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के इस फैसले पर रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया था। इसी बीच बिहार सरकार ने केंद्र से इस प्रावधान को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की भी गुहार लगई थी। यह अनुसूची केंद्र एवं राज्यों के ऐसे कानूनों की सूची है जिन्हें कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। पटना हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को समानता के अधिकार का हनन करने वाला प्रावधान कहते हुए इस पर रोक लगाई थी जिसके बाद पुराना 50 प्रतिशत आरक्षण वाली व्यवस्था ही दोबारा लागू हो गई। वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई सितंबर माह में करेगा। अब देखना यह होगा की बिहार सरकार इस प्रावधान की दिशा में अगला कदम क्या लेगी।